Tuesday, October 1, 2019



सुना है 'ईश्वर है' ! किसी ने ईश्वर को देखा भी है ?

जिसने उन्हें देखा है उनसे मिलाने का सौभाग्य आज तक नहीं मिला सुनते हैं ईश्वर को तुलसीदास ने देखा है, सबरी ने देखा, मीरा ने देखा, कबीर ने देखा, स्वामी राम तीर्थ ने देखा, गुरु नानक ने देखा, सुदामा ने देखा, राधा ने देखा, रैदास ने देखा, राम कृष्ण परमहंस ने देखा, महर्षि रमण ने देखा, रहीम ने देखा, रामकहान ने देखा, लेकिन कुल मिला कर गिनती के कुछ ही लोगों ने देखा

इन सबसे मिलना हो नहीं पाया, ही उनसे मिलना हुआ जो इन महानुभावों से मिले हों फिर भी बात बात में हर कोई उसी ईश्वर की दुहाई देता है डाक्टर की कुछ समझ में ना आये तो वह ईश्वर पर छोड़ देने की सलाह देता है मुश्किल में पडा आदमी ईश्वर को पुकारता है, भविष्य अन्धकार में दिखे तो भी व्यक्ति ईश्वर को बुलाता है कोई उससे डरता है, कोई उससे रूठता है, कोई उसके नाम की ताली बजाता है, कोई उसका गुणगान करता है, तो कोई उससे रो रो कर फ़रियाद करता है यानी वह अव्वल दर्जे का डाक्टर है, जज है, दोस्त है, हितेषी है, मुनीम है, मुहं मांगी इच्छा पूर्ण करने की क्षमता रखता है वह गज़ब का हरफनमौला है

पर कमाल है इतना सब कुछ होते हुए भी किसी को ईश्वर नज़र नहीं आता जोम नज़र नहीं आता उस पर इतना विश्वास, इतनी श्रद्धा क्यों ? क्योंकि किसी को स्वर्ग चाहिए,, किसी को मुक्ति, किसी को इस जीवन के जूझने की युक्ति चाहिए तो किसी को मुक्ति चाहिए किसी को परम आनंद श्री कृष्ण कहते हैं, अपनी योग माया में छिपा हुआ मैं सबके लिए प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिए यह अज्ञानी लोग मुझे जन्म रहित, अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानते लो जी अब बिलकुल साफ़ हो गया कि ईश्वर सबके सामने आना ही नहीं चाहता जान बूझकर अपने और हमारे बीच पर्दा दाल रक्खा है उसने, माया का

उड़िया बाबा ने भक्तों को समझाया कि उसे ढूंडने के लिए सात चीजों को छोड़ो, - शब्द, स्पर्श, रस, गंध, रूप, सुख और दुःख शब्द सुनना हो तो उसी के नाम का सुनना, स्पर्श करना हो तो उसी के चरणों का करना, रस लेना हो तो उसी के प्रसाद या चरणामृत का ही लेना, रूप देखने की इच्छा हो तो उसी की छवि देखना, गंध लेनी हो तो तुलसी मां की लेना, सुख चाहिए तो उसकी याद का, उसके सत्संग का सुख लेना और दुःख हो तो केवल इस बात का कि मिला क्यों नहीं अब तक तरिका तो पता चला पर स्थान

रामकृष्ण कहते थे उसे ड्राइंग रूम में ढूँढो ड्राइंग रूम यानी कि ह्रदय घर का सबसे सुन्दर कोना ह्रदय सुन्दर तब होता है जब उसमें काम हो ना कंचन अपने ह्रदय में झांका तो क्रोध मिला, इर्ष्या मिली, राग-द्वेष, मद मोह सब कुछ दिखा पर ईश्वर नहीं दिखा रामकृष्ण ने कहा, पहिले ह्रदय को साफ़, स्वच्छ निर्मल कर डालो धो लो, मांज लो असत्य बोलने से ह्रदय मैला हो जाता है ऐसा सत्य बोलो की इन्द्रियाँ झूठ स्वीकार ही कर पायें

वे कहते हैं, कि क्रोध मत करो, ह्रदय मैला हो जाएगा फिर ईश्वर को कैसे ढूँढोगे ? किसी ने कहा क्रोध तो अचानक जाता है क्या करें ? वे बोले कुछ मत करो ईश्वर की तरफ जाओगे तो दुर्गुण स्वयं दम दबा कर भाग जायेंगे पूर्व की तरफ बढोगे तो पश्चिम स्वयं पीछे रह जाएगा कबीर ने कहा है कि ईश्वर मंदिर में मिलेगा मस्जिद में सब नाराज़ हो गए, लो जी फिर कहाँ ढूंढे उसे ? कबीर बोले, चाहत मिटा दो- चाह गयी चिंता मिटी, मन बेपरवाह जिन्हूं कुछ चाहिए सोई शहंशाह

रहेगी चाहत, मिलेगी चिंता चिंता हो चाहत हो, बस उसको पाने की जैसे मीरा को हो गयी थी चाहत बदनामी हुयी, षड्यंत्र रचे गए मारने के देश निकाला हो गया, पर चाहत लगी रही उसे पाने की नानक बोले ईश्वर का नाम सत्य है बांकी सब झूट है हर कार्य करने वाला केवल वही एक है ईश्वर निर्भय है, निर्वैरी है, हर काल में विद्यमान है, अजन्मा है

लो ईश्वर का पूरा पूरा व्योरा मिल गया संदेह की तो गुंजाईस ही नहीं रही फिर भी जाने क्यों रह रह कर मन दोस्तों, रिश्तेदारों, T.V में ज्यादा शकून महशूस करता है हाँ धन में भी दुःख आता है तो इस बात पर नहीं कि ईश्वर नहीं मिला, बल्कि इस बात पर कि अफसर परमोशन रोके बैठा है, पडोसी ने गाड़ी खरीद ली इत्यादि

इंसान व्यस्त है तमाम ऐसे सुखों की गिनती करने में, जो उसके पास नहीं हैं- आलीशान बंगला, शानदार कार, स्टेटस, पॉवर वगैरह। और भूल जाता है कि एक दिन सब कुछ यूं ही छोड़कर उसे अगले सफर में निकल जाना है।

एक आदमी सागर के किनारे टहल रहा था। एकाएक उसकी नजर चांदी की एक छड़ी पर पड़ी, जो बहती-बहती किनारे लगी थी। वह खुश हुआ और झटपट छड़ी उठा ली। अब वह छड़ी ले कर टहलने लगा। धूप चढ़ी तो उसका मन सागर में नहाने का हुआ। उसने सोचा, अगर छड़ी को किनारे रखकर नहाऊंगा, तो कोई ले जाएगा। इसलिए वह छड़ी हाथ में ही पकड़ कर नहाने लगा।

तभी एक ऊंची लहर आई और तेजी से छड़ी को बहाकर ले गई। वह अफसोस करने लगा। दुखी हो कर तट पर बैठा। उधर से एक संत रहे थे। उसे उदास देख पूछा, इतने दुखी क्यों हो?

उसने बताया, स्वामी जी नहाते हुए मेरी चांदी की छड़ी सागर में बह गई। संत ने हैरानी जताई, छड़ी लेकर नहा रहे थे? वह बोला, क्या करता? किनारे रख कर नहाता, तो कोई ले जा सकता था।

लेकिन चांदी की छड़ी ले कर नहाने क्यों आए थे? स्वामी जी ने पूछा।

ले कर नहीं आया था, वह तो यहीं पड़ी मिली थी, उसने बताया।

सुन कर स्वामी जी हंसने लगे। बोले, जब वह तुम्हारी थी ही नहीं, तो फिर दुख या उदासी कैसी?

कभी कुछ खुशियां अनायास मिल जाती हैं और कभी कुछ श्रम करने और कष्ट उठाने से मिलती हैं। जो खुशियां अनायास मिलती हैं, परमात्मा की ओर से मिलती हैं, उन्हें सराहने का हमारे पास समय नहीं होता।

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