एक कहानी
ये
भी
एक
छोटे से गाँव
में एक गरीब
इमानदार ब्राह्मण था! नौकरी
के लिए वह
एक सेठ के
पास जाता है,
सेठ उसकी माली
हालत देख कर, उस पर
तरस खाकर नौकरी
पर रख लेता
है!
वह
ब्राह्मण इमानदारी से अपना
काम शुरू कर
देता है! पहले
तो उसे साफ़
सफाई का काम
दिया गया था,
जिसे उसने बहुत
ही अच्छे से
निभाया! वह दिन
भर साफ़ सफाई
करता और शाम
को सोने से
पहले अपने कमरे
में रखे एक
संदूक को एक
बार जरुर खोल
के देखता! दुकान
के बांकि कर्मचारी उसकी
इस हरकत को
देखते और परेशान
रहते कि आखिर
इसके इस संदूक
में ऐसा क्या है
जो यह हर
दिन खोल कर देखता
है और बिना
कुछ निकाले वापस
बंद करके रख
देता है?
फिर
किताबी ज्ञान देख कर
उसे सेठ दुकान
के हिसाब - किताब
का काम भी
दे दिया जाता
है! जब उसको
यह काम मिलता
है तो वह
बहुत बखूबी से
सेठ को सूचित
करता है कि उनका
कारोबार पिछले दो सालों
से
बहुत ही लाभ
में जा रहा
है, लेकिन सेठ
को उनके मुनीम
द्वारा यह सूचित
किया गया था कि
उनके कपड़े के
कारोबार में कोई
ज्यादा लाभ नहीं
हो रहा! सेठ
अपने पिछले मुनीम
को बुला कर
पूछता है कि
उसने क्यों उसको
गलत जानकारी दी?
मुनीम घप्लेबाज़ था इसीलिए
उसके पास इस
प्रश्न का कोई
उत्तर नहीं था!
सेठ उसे नौकरी
से निकाल देने
का फैसला करता
है, लेकिन ब्राह्मण
के निवेदन पर
उसे दुबारा नौकरी
पर रख लेता है!
लेकिन ब्राह्मण का
वेतन उस मुनीम
से ज्यादा करके
मुनीम को उस गरीब
ब्राह्मण की देखरेख
में काम करने
का आदेश भी
देता है! धीरे
धीरे समय बीतता
है! गरीब ब्राह्मण
अब गरीब नहीं
रहता! समाज में
उसने अपनी एक
साफ़ छवि बना
कर रखी हुई
थी! जो भी
सेठ की दुकान
में आता वही
ब्राह्मण की प्रशंसा
करके जाता! समय
बदलने के साथ
साथ ब्राह्मण ने
अपने विचार, अपनी
आदत और अपना
विनम्र स्वभाव नहीं बदला!
लेकिन
दुकान से बाकी
कर्मचारियों को उससे
बड़ी ईष्या थी!
वह धीरे धीरे
एक साजिश के
तहत सेठ का
कान भरना शुरू
कर देते हैं!
और कहते हैं कि
वह दुकान की
तिजोरी से पैसे
चोरी करके अपने
संदूक में रखता
है और हर
दिन उसे देख
कर सोता है! सेठ
को भी अपने
पिछले मुनीम और अपने
बाकी कर्मचारियों की
बातों पर विश्वास
होने लगता है!
एक दिन सेठ
ब्राह्मण को बुला
कर संदूक के
बारे में पूछ
लेता है! लेकिन
ब्राह्मण उसे संदूक
के बारे में
कुछ भी कहने
से साफ़ मना
कर देता है!
इससे सेठ को
और गुस्सा आता
है और उस
अपने कर्मचारियों के
साथ उस ब्राह्मण के कमरे
में जा कर उसके
संदूक का ताला
जबरजस्ती तुड़वाता है! उस
संदूक से एक
पुराणी मैली पोशाक
और एक फटा
हुआ जूता मिलता
है! पूछे जाने
पर ब्राह्मण बताता
है की यह
वही पोशाक है
जो वह पहली
बार पहन कर
सेठ के पास
आया था! यह
पोशाक मैंने इसीलिए
संभाल कर रखी,
क्योंकि मुझे ज़िन्दगी
भर कितना भी
यश-अपयश मिले
लेकिन मैं कभी भी
अपने पुराने दिन
ना भूल पाऊं!
और इससे रख
के मैं ये
भी याद रखता
हूँ की मेरी
कल की ज़िन्दगी
कैसी थी और
सेठ जी के वजह
से आज कैसी
है, मैं उनका
अहसान हमेशा याद
रखूं! यही वजह
है की मैं
हर दिन सोने
से पहले इसे
जरुर देखता था!
यह
सब सुन कर सेठ
ने उसे गले
से लगा लिया
और कभी भी
छोड़ के ना
जाने का वादा
भी ले लिया!
और बाकी के
कर्मचारियों को दुत्कारते
हुए नौकरी से
निकाल देता है!
लेकिन वह सभी
उस ब्राह्मण का
पैर पकड़ के
रोने लगते हैं
और ब्राह्मण सेठ
जी से उनको
दुबारा काम पर
रख लेने के
लिए निवेदन करता
है, जिसे वह
सेठ मान जाता
है!
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