क्यों जरूरी
है
भगवत
भजन
इस
संसार में हर
कोई अपने-अपने
फायदे के उद्देष्य
से काम कर
रहा है ।
अपने अपने विचारों
में लोग चेष्टा
कर रहे हैं
दुःख दूर करने
और सुख प्राप्ति
के लिए, लेकिन
क्या वास्तव में
किसी का दुःख
दूर हो रहा
है या किसी
को सुख प्राप्त
हो रहा है
?
श्रीमदभागवत
में एक प्रसंग
है । नरसिंह
भगवान् प्रगट हुए, उन्होंने
हिरणकश्यप को मारकर
उसके पुत्र प्रहलाद
को पिता के सिंहासन
पर बैठने का
आदेश दिया ।
प्रहलाद सिंहासन पर बैठकर
राज्य का सारा
कामकाज देखने लगे ।
वे स्वयं प्रजा
से मिलकर सुख
दुःख में उसकी
सहायता करते, जिससे उनकी
प्रजा बड़ी सुखी
थी। एक
दिन प्रहलाद मंत्रियों
को लेकर प्रजा
का समाचार जानने
के लिए जा
रहे थे ।
उन्होंने देखा कि
रास्ते में कुछ
दूरी पर एक
काले रंग का
व्यक्ति सिर्फ एक लंगोटी
पहनकर रेट पर
लेता है ।
प्रहलाद ने अपने
मंत्रियों से कहा
कि जाकर देखो
यह व्यक्ति मेरे
राज्य में इस
प्रकार क्यों पडा है
? इसे क्या दुःख
है ?
महाराज
का आदेश होने
पर भी मंत्रियों
ने कोई उत्साह
नहीं दिखाया ।
उन्होंने समझा शायद
भिकारी होगा ।
मंत्रियों को आज्ञा
की उपेक्षा करते
देख, प्रहलाद स्वयं
ही उस आदमी
के पास गए,
उसे धरती पर
लेटकर साष्टांग प्रणाम
किया और उसके
दोनों पैर अपने
हाथों में लेकर
सहलाने लगे ।
यह देखकर मंत्री
आश्चर्य में पड़
गए
कि आखिर महाराज
इस व्यक्ति के
साथ ऐसा व्यवहार
क्यों कर रहे
हैं ?
प्रहलाद
ने नम्रतापूर्वक कहा,
'आप इस गर्म
रेत पर क्यों
लेते हैं ? आपका
शरीर तो बलवान
है, आप मेहनत
करके रूपैया कमा
सकते हैं और
सुन्दर कुटिया बनाकर उसमें
रह सकते हैं
। देखिये, आपके
सामने रास्ते में
कितने आदमी चल
रहे हैं, सभी
का एक ही
उद्देश्य है ।
दुःख दूर करना
और सुख लाभ
करना । सभी
दिन-रात सुख
के किये मेहनत
कर रहे हैं,
आप भी अपने
सुख के किये
मेहनत कीजिये ।'
प्रहलाद की बातें
सुनकर वह व्यक्ति
हंसने लगा, बोला,
'सभी सुख की
आशा में रात
दिन मेहनत कर
रहे हैं, परन्तु
क्या वे सुख
पा भी रहे
हैं ? किसी को
शान्ति नहीं मिल
रही, सुख लाभ
नहीं हो रहा
है, बल्कि दुःख
ही मिल रहा
है । तो
दुःख के लिए
दिन-रात मेहनत
करना क्या बुद्धिमता
है ? इसीलिए मैं
निश्चित होकर रेत
पर पड़ा हूँ
।'
हम
भी सोचते हैं
कि रूपया होने
से सुख होगा,
परन्तु जिनके पास बहुत
रूपया है उनसे
जाकर पूछिए की
क्या वे सुखी
हैं ? बाटा शू
कम्पनी के मालिक
अपने समय में
संसार के दूसरे
धनि व्यक्ति थे
। जब वे
पैरिस में थे
तो उन्होंने अपनी
हवेली की 14वीं
मंजिल से कूदकर
आत्महत्या की थी
। क्या कोई
सुख में आत्महत्या
करता है ?
जब
सहन करने का
सामर्थ्य नहीं होता
तभी आदमी आत्महत्या
करता है ।
हेनरी फोर्ड का
एक बेटा था
। जब वह
तीन साल का
हुआ, तो उसे
एक भयंकर बिमारी
ने जकड़ लिया,
जो उसे मृत्यु
के मुंह में
ले जाने का
बहाना बनी ।
क्या पिटा के
अरबों रूपये उसके
काम आये ? वह
धनि पिता अपने
धन के बल
पर अपने पुत्र
को नहीं रोक
सका, 'यद्यपि वह
विश्व का प्रथम
धनी व्यक्ति था
। कोई सोचता
है कि सुन्दर
स्त्री होने से
सुख होगा, सुन्दर
पति होने से
सुख होगा, लड़का
होने से सुख
होगा, ऐसा करते-करते हाथ
से जीवन चला
जाता है, लेकिन
सुख नहीं मिलता
। क्या कभी
हमने यह सोचा
है कि हमारे
दुखों का मूल
कारण क्या है
?
आचार्य
देव ने जीव
के दुखों का
मूल कारण बताते
हुए कहा है
कि प्रत्येक प्राणी
में जीवन, भगवान्
की ही शक्ति
का अंश है,
इसलिए वह भगवान्
का नित्यादास भी
है, अर्थात वह
प्रभु की इच्छा
के अधीन है
। लेकिन वर्तमान
अवस्था में जीव
अपने प्रभु को
भूल गया है,
इसलिए इस भाव
-व्याधि में पड़ा
नाना प्रकार के
कष्ट पा रहा
है । भगवद
- विस्मृति रूपी अपराध
को दूर न
करके, दुःख दूर
की हम जितनी
भी चेष्टाएँ करेंगे,
सब व्यर्थ ही
होंगी, क्योंकि दुखों का
कारण है भगवान्
को भूलना ।
यदि सुख चाहते
हो तो भगवान्
को याद करो,
प्रभु का सहारा
लो, अपने प्रभु
को पुकारो, उनका
नाम लो, क्योंकि
सच्चे आनंद की
वास्तु तो वे
ही हैं ।
बर्फ के पास
जाने से ठंडक
और अग्नि के
पास जाने से
ताप मिलता है
। ऐसा नहीं
हो सकता की
बर्फ से ताप
और अग्नि से
ठंडक मिले ।
जो वास्तु जहां
पर है, वह
वहीं से मिल
सकती है ।
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