Thursday, January 24, 2013


THE METHOD TO LIBERATE ONESELF FROM LIFE AND DEATH

Due to the actions performed, the body has to undergo transmigration and as a result a wale of sufferings. Humans can liberate themselves only when they realize the eternal truth and the supreme God in their heart. That supreme God is formless but can be attained by devotion, faith and pure love. A person who realizes him becomes immortal and is freed from the vicious cycle of life and death.

At the time of death the soul leaves the physical body but takes the wiliness body and Conscious body along with it. The body is a carrier of soul

The individual soul dwells in the heart of a human being. The factual characteristic of the soul is that it is 18 times brighter than the Sun. The soul is devoid of the darkness of ignorance. As this Jiva जीव (Life) attaches itself to ephemeral worldly objects it has to undergo transmigration. The Jiva जीव (Life) is very minute but it is equally infinite. It is confined to one state only because of the merits of intellect that is the resolution and the ego.

The Jiva जीव (Life) is neither a male nor a female and neither a neuter gender. It assumes form according to the body it merges or impregnates into. It is devoid of titles but has to bear the fruits of its actions by taking birth in different Yonis योनी (forms)

Incorporeal personal Agency means a person without Physical shape. Physical shape (Body) made out of two natural elements. These are called OVUM & SPERM, Ovum has got two additional elements, which develops along with body development in the womb. And make wiliness body & Conscious body. All these three (Physical, Wiliness and Conscious Body) fully developed then a live soul enters in it. Man live with these three bodies. These three bodies are similar. As concern with life each one of the body depends on the other. aayu आयु (Age)] karam कर्म (Action)] vitta वित्त (Wealth) vidya विद्या (Education) va nidhan व् निधन (Death) इन पांचो का उल्लेख विरंची (ब्रह्मा जी ) शिशु के गर्भ में ही निर्धारित कर देते हैं. these five are determined to the child in the womb of the mother.

Due to the actions performed, the body has to undergo transmigration and as a result a wale of sufferings. Humans can liberate themselves only when they realize the eternal truth and the supreme God in their heart. That supreme God is formless but can be attained by devotion, faith and pure love. A person who realizes him becomes immortal and is freed from the vicious cycle of life and death.

At the time of death the soul leaves the physical body but takes the wiliness body and Conscious body along with it. The body is a carrier of soul

All the egg cells in the ovary of the female are formed before birth, and none can be formed later. The male is different; Spermatozoa are continuously being formed in his testicles from puberty onwards, and into old age. The father determines the sex of the child.

According to Hindu हिंदू Texts when one dies, his soul or life energy or soul which is enveloped in the Linga Sarira लिंग शरीर or a subtle sheath and invested with the sum total of good and bad Karma कर्म passes after sometime into another plane shaping of the gross body as a man castes of his own - out clothes and put on new one.

His re- birth then take place in a physical body corresponding with the deeds done by him in his previous life. The process of death and birth go on until Moksha मोक्ष or final liberation. The Karma कर्म is the result of our actions and our actions are due to our thoughts and hence it is man who creates his karma कर्म for it is the product of his thought.

Linga लिंग is derived from the two Sanskrit संस्कृत words laya लय (dissolution) and agaman अगम (recreation).” Thus the linga लिंग symbolizes both the creative and destructive power of the Lord and great sanctity is attached to it by the devotees.


लिंग को भली भांति समझने के लिए हमें पुनर्जनम व संस्कारों के अंतरसंबंध को समझाना पड़ेगा । लिंग के बारे में हिंदू समाज में विभिन्न प्रकार की भारंतियाँ  प्रचिलित है । मसलन शिवलिंग का अर्थ शिव जनेन्द्रिय से है। तथा सामान्यतः लिंग का अर्थ जनेन्द्रिय है। लिंग वस्तुत्वा संस्कृत का विशुद्ध शब्द है , जिसका अर्थ चिह्न या प्रतीक है। हिंदू समाज में एक प्रकार की भरांति यह प्रचिलित है की मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कार्य करता है, उसके कुछ संस्कार बनते हैं , जिन्हें भावःप्रविर्ती या प्रकृति कहतेहैं। अब प्रशन यह उठता है की कर्म या संस्कार तो शरीर से होते हैं और शरीर तो मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है, फ़िर कर्म फल व संस्कारी कैसे दूसरे जनम में प्राप्त होते हैं। यहीं पर लिंग शरीर का महत्वा प्रकट होता है। आत्मा तो संस्कारों से निर्लिप्त है । परन्तु आत्मा के शरीर त्यागने पर यह आत्मा पर एक आवरण की भांति लिपट जाता है। इसकी रचना में अठारह तत्त्व होते हैं और मन दसों इन्द्रियां व पाँचों माम्न्नाओं का भी बीज रूप में अंस विद्यमान रहता है। एक जन्म की साधना, देखे गए दृश्य, सुनी गयी ध्वनियाँ कभी भी व किसी भी जन्म में प्रकट हो सकती हैं। क्योंकि यह लिंग शरीर प्रतेक जन्म में एक आवरण से आत्मा को ढँक देती है और वास्तविक मोक्ष इस आत्मा के लिंग शरीर से निर्व्रित है या फिर प्रलय आने पर ही इसका नाश होता है, जब सम्पुरण आत्मा तत्वा हिरण्यगर्भ में विलीन हो जाता है।

पुरूष जनेन्द्रिय को लिंग कहने का तात्पर्य यही है की वह पिता के संस्कारों व भावों को पुत्र में स्थापित करता है। इसीलिए पुत्र को आत्मज यानि आत्मा से उत्पन्न कहा जाता है, न की शरीर या शरीर से उत्पन्न आज विज्ञानं भी स्वीकार करता है की शरीर के नष्ट हो जाने पर भी शीत कक्षों में सुरक्षित वीर्य से संतान जन्म ले सकती है यही लिंग का रहस्य है । भगवन भगवान् श्री कृष्ण द्वारा मार्कडेय को लिंग का उपदेश दिया गया, जिसमे लिंग को ज्योति स्वरुप अक्षर, अव्ब्यक्त, और आनंद कहा गया है तथा लिंग पूजन के महात्मय की चर्चा की गयी है। काशी में मरण होने पर स्थूल, सूक्ष्म व कारण - इन तीनों प्रकार के शरीरों का सदा के लिए नाश हो जाता है। इसीलिए काशी को महाशमशान कहते हैं और यहाँ मृत्यु को मोक्ष प्रदायिनी माना गया है।

It is written in Bible that “Die when you live” after death every body is dead, but when you die when you live is meant Meditation, take out your soul from your body then you will see I am here this is a body then you enter in the same body. This can be done in the guidance of Guru गुरु only. Or else you may not be able to enter in the body that means you are dead. The purpose of meditation finishes that is why DIE WHEN YOU LIVE.

मृत्यु के समय प्रतेक मनुष्य का सूक्षम या लिंग शरीर जिसका परिमाप अंगुष्ठ मात्र होता है, स्थूल शरीर से अलग हो जाता है और अपने कर्मों व संस्कारों के अनुसार विभिन्न लोकों और विभिन्न योनिओं में भ्रमण करता है या जन्म लेता है । सूक्षम शरीर या लिंग शरीर की मुक्ती या मोक्ष तभी सम्भव होता है, जब अन्नमय देह कोष से अलग होते ही उर्धगामी हो जाए अर्थात पृथ्वी के गुरुत्वाक्ष्ण के कारण जहाँ लिंग शरीर की अधोगति या त्रियक गति न हो ( दाहिनी आँख व बाईं आँख का मिलन जहाँ पर होता है, अर्थात जहाँ पर योगिक रूप से आज्ञान चक्र स्थित है, उस पर ध्यान करने से रोम रोम व्याप्त प्राण की वास्तविक अनुभूति होती है। और योगी इन प्राणों को योगबल द्वारा उर्ध्गति से सहस्रार चक्र में स्थित वेदांत के भेदन के द्वारा जब शरीर से त्यागता है तो मोक्ष प्राप्ति होती है.)


साधारण मनुष्य का लिंग शरीर तो मृत्यु के पश्चात ही स्थूल शरीर से पृथक हो जाता है, परन्तु योगीजन समाधी की अवस्था में जीते जी लिंग शरीर को पृथक कर लेते हैं। काशी की ऐसी भोगोलिक स्थिति है की वहां गुरुत्वाक्षण बल गंगा की उत्तरवाहिनी होने के क्षेत्र से काफी क्षीण हैं और मृत्यु के समय आत्मा अन्या स्थानों पर पुरुषों के लिए (योगिओं को छोड़ कर ) गुरुत्वाक्षण की प्रबलता के कारण उर्ध गामी न होकर अधोगामी हो जाती है । और ब्रह्म्रान्द्र के मार्ग से शरीर को नही त्याग पाती, जब की काशी में यह बल क्षीण होने के कारण सहज ही ब्रहम रंध्र से शरीर को त्याग देती है। सभी योगियों ने यह अनुभव किया है की केवल काशी में ही ऐसा उर्द्वा आकर्षण है, जो स्वयं ही लिंग शरीर को ऊपर की और ले जाता है और चाहे जैसा भी जीव हो, उसे सद्मुक्ति प्राप्त होती है।) इसी कारण काशी में प्राण त्याग को प्रकारांत में मुक्ति प्रदायक मानने की परम्परा हो गयी है। शरीर में आत्मा इसी मार्ग से प्रवेश करती है, और यही इसके त्याग का मार्ग होना चाहिए।

KASHIPURI, KAPARDISHWAR & GAYA  
काशीपुरी, कपर्द्वेषर और गया

On being asked by Yudhishthir युधिष्टर about the magnificence of holy places like Kashipuri, काशीपुरी Kapardishwar कपद्वेश्वर & Gaya गया Narad नारद said ---

Just as Lord Mahadev महादेव is supreme among all the deities, in the same manner Kashipuri काशीपुरी holds a significant status among all the places of pilgrimage. Hence an individual should make it a point to visit Kashi काशी once in his life time. The famous Shiva linga Kopardishwar शिवा लिंग कपराद्वेस्वर is installed at Kashi काशी and is said to fulfill all the desires of a man. Performance of various rituals at Kashi काशी liberates a man from all his sins-all his flaws are eliminated automatically just by residing in Kashi काशी

A devotee who regularly practices meditation in the temple of Lord Kapordishwar क्पोदिश्वर attains Yogasiddhi योगसिद्धि within six months. Worshipping Lord Kapardishwar कपोद्विश्वर after taking a holy dip in Pishach-mochan kunda पिशाच मोचन कुंडा liberates a man from gravest of sin like 'Brahmahatya',ब्रह्म ह्त्या etc. Gaya गया is considered to be a sacrosanct place of pilgrimage and various rituals for the pacification of the souls of dead ancestors are performed here. Anybody who offers Pindadaan पिंडदान and tarpan तर्पण at Gaya गया not only liberates his ancestors but also himself. There is a very famous Banyan tree named Akshayvat अक्षयवट at Gaya गया . Gaya गया is situated at the bank of river Falgu फल्गू ।

काशी में मरण हनी पर स्थूल, सूक्षम व कारण - इन तीनों प्रकारों के शरीरों का सदा के लिए नाश हो जाता है। इसी लिए काशी को महाशमशान कहते हैं और यहाँ मृत्यु को मोक्ष प्रदायिनी माना गया है।

No comments:

Post a Comment