आत्मा कौन है ? आत्मा क्या है ?
प्राणों के द्वारा मन बुद्धि की वृतियों के अनुरूप शरीर के हृदयाकाश में स्थित विज्ञानमय , आनंदमय , ज्योति का गनीभूत बिन्दुस्वरूप ही आत्मा है । जो लोक लोकांतरों में भ्रमण करती रहती है । यह लिप्त भी है । जब तक यह इस देह में स्थित रहती है, तब तक मन व् बुद्धि की इच्छा व् तर्क के अनुरूप यह चिंतन व् विचारों को जनम देती है व् प्राणों के माध्यम से इन्द्रियों को तदनुरूप चेष्टा करती है । गहन निद्रा के समय यह अस्थाई रूप से इस शरीर को व् इस लोक को त्यागकर लोक लोकांतर की यात्रा करती है । इसी कारण उस समय मन व् बुद्धि चिंतन व् विचार शून्य हो जाते हैं । तथा इन्द्रियाँ चेष्टा विहीन । उस समय ये आत्मा अपने लिए वासनामय शरीर की रचना कर लेता है । अर्थात जैसी वाशना या इच्छा मन में अचेत होते समय होती है, उसी के अनुरूप यह वासनामय शरीर के द्वारा एक नए लोक की रचना कर लेता है । कभी इस वासनामय शरीर के द्वारा वह मित्रों के साथ हंसता है, कभी भयभीत होता है, कभी स्त्रीयों के साथ रमण करता है, तो कभी अपने मृत्य सम्बन्धियों से मिलता है ।
सांसारिक लोग यही सोचते हैं कि वह सो रहा है । परंतु कोई भी नहीं देख पाता की ये (आत्मा) क्या देख रहा है, इसी लिए वैद्य भी यही कहते हैं, तथा यह सत्य भी है कि सोये हुए व्यक्ति को सहसा एक दम न जगाएं, क्योंकि ऐसा करने से आत्मा को शरीर में प्रविष्ट हो कर मन व् प्राण को सक्रिय करने का उचित समय नहीं मिल पाता और शरीर दुश्चिताशय हो जाता है । जब वासनामय शरीर की त्रिप्ती जाती है, तो आत्मा स्वतः ही इस देह में प्रविष्ट कर जाती है और जीव को निंद्रा से चेतन अवस्था में ले आती है । और एक दिन ये भेदी आत्मा कर्मों के भार से शरीर को छोड़ते समय स्वास के माध्यम से शरीर को त्याग कर चली जाती है ।
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