Monday, December 24, 2012


एक बोध कथा
PREY में कोई AIM

"तुम एक व्यक्ति से प्रेम कर सकते हो, और यदि वह व्यक्ति किसी और से प्रेम करता है तो कोई ईर्ष्या नहीं है, क्योंकि तुम्हारा प्रेम अत्यधिक आनंद से उत्पन्न हुआ है। यह पकड़ नहीं है। तुम दूसरे व्यक्ति को कैद नहीं कर रहे थे। तुम परेशान नहीं थे कि दूसरा व्यक्ति तुम्हारे हाथों से छूट जाएगा, कि कोई और प्रेम संबंध बनाना शुरू कर देगा

जब तुम अपने आनंद को बांट रहे हो, तुम दूसरे के लिए कैद नहीं बनाते। तुम बस देते हो। यहां तक कि तुम आभार या धन्यवाद भी नहीं चाहते, क्योंकि तुम कुछ पाने के लिए नहीं दे रहे, आभार के लिए भी नहीं। तुम दे रहे हो क्योंकि, तुम इतने भरे हो कि तुम्हें तो देना ही है।

इसलिए यदि कोई आभारी है, तुम उस व्यक्ति के लिए कृतज्ञ होगे जिसने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया था, जिसने तुम्हारा उपहार स्वीकार किया था। उसने तुम्हें भार मुक्त किया है, उसने तुम्हें अपने ऊपर प्रेम वर्षा करने की अनुमति दी। और जितना ज्यादा तुम बांटोगे, जितना ज्यादा तुम दोगे, उतना ज्यादा तुम्हारे पास होगा। इसलिए यह तुम्हें कंजूस नहीं बनाता, यह नया भय उत्पन्न नहीं करता कि मैं इसे खो दूंगा। सच तो यह है कि जितना ज्यादा तुम इसे खोते हो, उतना ही ज्यादा ताजा पानी स्रोतों से बहने लगता है, जिनके बारे में तुम्हें पहले पता नहीं था। "

जब आपकी PREY में कोई AIM होता है, तभी वह "प्रेम" होता है और प्रार्थना का क्या लक्ष्य होता है, क्या होना चाहिए, ये आपको पता होना चाहिए और लक्ष्य अगर सिर्फ इच्छा या वासना हुई तो फिर आप चूक गए और प्रायः हर जन्म और योनी में चूकते चले रहे हैं अब तो जागो, समझो, विचार करो, नहीं तो फिर चूके

प्रार्थना में आप उससे मुखातिब होते हैं, जिसे परमात्मा कहा है, प्रायः सभी धर्म पथों ने पर परमात्मा से तुम्हारी बात तब तक हो सकेगी, जब तक आप उसके समक्ष, आत्मा के रूप यानि अपने स्व-रूप में ना होंगे

उसके लिए इस देह का भान ( देहाभिमान ) छोड़ना होगा ध्यान के माध्यम से आत्म स्तिथ होना होगा। कद, पद, प्रतिष्ठा का अभिमान, तुम्हे देह से बाहर ना आने देगा और तुम अपने स्व (आत्मा) से विलग ही रहोगे। और फिर तुम्हारी सारी प्रार्थनाएं निरर्थक होगीं और तुम फिर चूक जाओगे !

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