Monday, April 27, 2020




याद आती है माँ

कहते हैं कि सारे सागरों की स्याही बना ली जाए और पूरी धरती को कागज़, तो वो भी माँ की महिमा लिखने के लिए कम पड़ जाएगा ऐसी होती है प्यारी माँ

माँ एक छोटा सा शब्द, लेकिन इस एक माँ के शब्द में जैसे पूरी दुनियाँ समाई है यह एक शब्द अथाह और अनंत है भगवान् के लिए  कहते हैं , 'हरि अनंत हरि कथा अनंता,' माँ के बारे में भी कुछ ऐसा ही है कितनी कहानियां, किस्से, सूक्तियां, विचार लेख, कवितायेँ आखिर क्या कुछ नहीं लिखा गया है माँ पर आप सिर्फ तीन शब्द Google  कीजिये –What is Mother-  और एक अरब छप्पन करोड़ से भी ज्यादा Result  सामने आयेंगे और दावा है कि यह आंकड़ा माँ पर लिखे साहित्य का मुश्किल से दसवां हिस्सा भर होगा

आखिर माँ कि परिभाषा क्या हो सकती है ? शायद कुछ नहीं जैसे हवा, गंध, स्वाद स्पर्श ...इन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है,  उसी तरह माँ को भी सिर्फ महसूस किया जा सकता है हाड़-मांस की इंसान के  में वह हमारे सामने भले ही होती है लेकिन वह वास्तव में क्या है, यह उसका बच्चा ही महसूस कर सकता है माँ से उसके बच्चे का सम्बन्ध दुनियां का सबसे अनगढ़ लेकिन सबसे गहरा सम्बन्ध है पूरे  जीवनकाल  में यह सम्बन्ध इतने रूप धारण करता है कि जिनकी गिनती ही संभव नहीं है एक बच्चे के साथ कभी उसकी माँ की दिनचर्या देखिये, आप समझ ही नहीं पायेंगे कि आखिर हो क्या रहा है और आखिर में  आप स्वयं ही इस पहेली को अनसुलझा छोड़ देंगे इस पहेली को मानव शास्त्र। समाज शास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, की पोथियों से सुलझाने की कोशिस करेंगे तो और उलझ जायेंगे, क्योंकि इस सम्बन्ध में ज्ञान तो चलता ही नहीं है।

यहाँ तो सिर्फ भावना है, संवेदना है इस नजरिये से देखेंगे तो सब कुछ एक पल में समझ में जाएगा दरअसल हम जो कुछ हैं, वह हमारी माँ का विस्तार ही है एक बीज के रूप में माँ की कोख में आने के बाद हम जीवन में जो भी हासिल करते हैं, वह माँ का दिया हुआ होता है माँ का दिया हुछ हमे दिखता है, कुछ हम महसूस करते हैं और बांकी और कुछ हमे भले ही नज़र नहीं आता लेकिन होता जरूर है सबसे बड़ी  बात यह कि इसके बदले माँ सिर्फ इतना चाहती है कि हम उसकी भावनाओं का ख्याल रखे, वैसे भी रखें तो माँ को कुछ फर्क पड़ता नहीं है और एक एक दिन हमीं को यह महसूस हो जाता है कि हम क्या गलती कर रहे थे दरअसल वो कहते हैं कि जो चीज आसानी से मिल जाती है उसकी कद्र नहीं होती माँ से मिलाने वाली नेमतों का भी कुछ यही हाल है इसकी अहमियत हमें वक्त निकलने पर पता चलती है

माँ की अहमियत उस समय महसूस होती है जब याद आता है कि ये सब तो माँ ने भी बताया था लेकिन तब तक अक्सर  वो हमसे दूर हो चुकी होती है दरअसल त्रादसी यही है किसी की भी अहमियत हमें तभी पता चलती है, जब वह हमसे दूर हो जाता है एक भरे पूरे परिवार में माँ ही वह धुरी होती है, जिस पर परिवार घूमता है माँ को खोने के बाद ही हमें पता चलता है कि हमारा जीवन, घर, परिवार अब सब कैसे चल रहा था कैसे अपने आप सब कुछ हो रहा था माँ के लिए बहुतों ने बहुत कुछ लिखा है, लेकिन उज्जैन के एक बहुत ही वरिष्ठ कवि रहे हैं ओम व्यास माँ पर लिखी उनकी पक्तियाँ अदभुत हैं उन्होंने कविता पढने से पहले कहा भी था .....

जब हम चौके में बैठ कर रोटी खाते हुए ज़रा इधर उधर नज़र फिराते हैं तो माँ समझ जाती है और नमक का डिब्बा हमारी ओर सरका देती है यही है माँ

...माँ कलम है, दवात है, स्याही है
माँ परमात्मा की स्वयं की गवाही है।
माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है
माँ फूक से ठंडा किया हुआ कलेवा है
माँ चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कन्धों का नाम है
माँ काशी है, काबा है, और चारों धाम है
माँ चिंता है, याद है, हिचकी है
माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है।
माँ चूल्हा-धुंआ-रोटी और हाय्थों का छाला है
माँ जिन्दगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है

.....तो माँ की कथा अनादि है, अध्याय नहीं है और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,

माँ का महत्व दुनियाँ में कम हो ही नहीं सकता और
माँ जैसा दुनियाँ में कोई हो ही नहीं सकता

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