One
day you will realize that material things mean nothing. All that matters is the
well-being of people in your Life.
आज पुरुषार्थ का 90 प्रतिशत
भाग् धन कमाने में लग गया है । सारे प्रयास धन के पीछे हैं । आदमी को धनवान भी होना है और भगवान् से भी मिलना है । दोनों की चाहत समानान्तर चलती है । पैसा और परमात्मा एक साथ मिलें इस मणिकांचन योग के लिए कई लोगों ने अपनी पूरी जिन्दगी दाँव पर लगा दी । शास्त्र कहते हैं न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं । वह जैसा चाहती है वैसा नचाती है । वेदव्यास में लक्ष्मी के सात साधन बताये हैं ।
1
धैर्य धारण करना ।
2
क्रोध न करना ।
3
इन्द्रियों को वश में रखना ।
4
पवित्रता ।
5
दया ।
6
सरल वचन । और
7
मित्रों से द्वेष न रखना ।
कोई भी धर्म यह नहीं कहता कि धन ना कमाया जाए । भगवान् को हमारी निर्धनता से अधिक हमारी वैराग्य वृति प्रिय है । बड़े से बड़ा धनवान वैरागी हो सकता है और गरीब से गरीब के भीतर भी इस वृति का अभाव हो सकता है । अतः धन कमाना बुरा नहीं है] आप
किस तरह से कमा रहे हैं और धन अर्जन के कृत को किस प्रकार पूरा कर रहे हैं] यह
महत्वपूर्ण है । परिणाम उसी में छुपा है । धन दुःख नहीं देता और ना ही सुख बरसाता है । उसके तरीके का सारा खेल है जैन धर्म में महावीर स्वामी ने एक सूत्र में कहा है, कर्म
कर्ता का ही अनुगमन करते हैं । जो व्यक्ति जिस तरह से धन कमा रहा है] परिणाम
उसे ही भुगतना है । उस धन से जो दूसरे लाभ ले रहे हैं उन्हें उसका परिणाम वैसा नहीं भुगतना होगा । भगवान् महावीर का सूत्र है । जाती, मित्र
और संताने इस दुःख का विभाजन नहीं कर सकते । ऐसा दुःख अकेले ही भुगतना पड़ता है । इसलिए नीति से कमायें और रीति से खर्च करें ।
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