कुछ
तो लोग
कहेंगे।....
इस कहानी को बचपन में मेरी माँ ने तब सुनाया था, जब
मुझे किसी सहपाठी की कोई बात बहुत बुरी लग गयी थी । कोमल मन एकदम से बहुत उदास हो गया, तो
माँ ने कहा कि बेटा किसी के कहने का इतना बुरा नहीं मानते। लोगों ने तो भगवान को भी नहीं छोड़ा, फिर
हम इंसान तो गल्ती के पुतले होते ही हैं ! इसलिए
लोगों की बातों को यूँ दिल से न लगाओ, बल्कि
उनका सार ग्रहण करो ।
बचपन
में सुनी कहानियाँ जब पुनः आँखों के सामने आती हैं तो बहुत अच्छा लगता है –विडम्बना
यही है कि ज़िंदगी की दौड़ में ये शिक्षाप्रद कथाएँ कहीं पीछे छूट चुकी हैं ।
वो भी क्या जमाना था, माँ
के पास जाना था, और
कहानी सुनते सुनते सो जाना था ! और
आज क्या जमाना है, बस
टीवी देखते देखते सो जाना है ! मां
अपने तरीके से शिक्षा अभी भी देती है और देना चाहती है, लेकिन
हमारा जीवन कुछ ऐसे ढर्रे पर चल निकला है कि बच्चे के दुनिया मां के आंचल से निकल बाहरी साधनों की ओर बहुत जल्दी बढ जाती है । पांच, छः
साल तक घर के आंगन में मां के पीछे पीछे घूमना कहां सम्भव रह गया है बच्चे के लिये । दो, ढाई
साल की उम्र मे प्ले -स्कूल
का रास्ता दिखा दिया जाता है, कहानी
टी.वी. के
कार्टून चैनल सुनाते हैं । और फ़िर बेचारी मांये भी कहां सब घर पर रह पाती हैं । यह जो अधाधुंध भागते रहने वाला जीवन जी रहे हैं हम, उसमें
कहां समय है कि मां बच्चे के कोमल मन में नैतिकता के बीज रोपे ।
कुछ तो लोग कहेंगे।....लोगों
का काम है कहना, छोड़ो
बेकार की बातों में, मूड
खराब नहीं करना ..... कुछ
तो लोग कहेंगे।....
बड़े दिनों पुरानी बात है, भगवान
शिव और पार्वती माता कैलाश पर्वत पर बड़े सुख से रहते थे । एक दिन पार्वती जी ने जिद पकड़ ली कि उन्हें भू -लोक
अर्थात पृथ्वी का भ्रमण करना है ! शिव
जी ने बहुत समझाया कि पृथ्वी पर दुख ही दुख है एवं इसका मूल कारण है कि लोगों से दूसरों का सुख नहीं देखा जाता, अतएव
वहाँ जाने से दिल ही दुखेगा । परंतु पार्वती जी हठ करने लगीं तो हारकर शिवजी ने कहा कि तुम नहीं मानतीं तो फिर चलते हैं, परंतु
धरती वासियों की बातों से व्यथित न होना ।
यूँ समझाकर, शिवजी
पार्वती जी सहित अपनी सवारी नंदी के साथ पृथ्वी भ्रमण के लिए निकल पड़े । कुछ दूर तक का सफर तो बड़े आराम से निकल गया, लेकिन
जैसे जैसे वो बस्ती के नजदीक पहुँचने लगे, लोगों
की आवाजाही शुरू हो गयी । शुरू में तो लोगों ने उनकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया, परंतु
थोड़ा और आगे चलने पर ज्यादा लोगों की निगाह उन पर पड़ी ! उनमे
से किसी ने कहा, देखो
देखो एक बेचारे जानवर पर कितने हृष्ट-पुष्ट दंपत्ति चले जा रहे हैं । लगता है इन्हें अपने आराम के आगे बेचारे जानवर की कोई चिंता नहीं है । अब पार्वती जी को बुरा तो लगना ही था, तो
उन्होने शिवजी से कहा कि स्वामी आप बैठें, मैं
थोड़ा पैदल चलूँगी ! शिवजी
ने कुछ न कहा बस मंद मंद मुस्कुरा भर दिये; परंतु
थोड़ी दूर आगे चले होंगे कि फिर किसी ने कहा कि देखो कैसा मरद है बेचारी पत्नी पीछे पीछे चल रही है और ये बैल पे सवार होकर ठाठ से चला जा रहा है । शिवजी जन मत का सम्मान करते हुये चुपचाप उतर गए और पार्वती जी को अपनी जगह बिठा दिया । .....थोड़ा
ही आगे बड़े थे कि किसी ने फिर से कह दिया कि देखो कितनी बेशरम पत्नी है, बेचारा
पति पैदल चल रहा है लेकिन ये आराम से बैठ कर जा रही है । स्वाभाविक था कि पार्वती जी ने कहा कि अब हम पैदल ही चलते हैं । परंतु जैसे ही थोड़ा सा आगे बड़े तो किसी ने कहा देखो देखो कितने बेवकूफ लोग हैं; सवारी
होते हुये भी पैदल चले जा रहे हैं । अब तो पार्वती जी पूरी तरह से दुखी हो गईं और वहीं पड़े एक पत्थर पर बैठ गईं । शिवजी उन्हें समझाने ही वाले थे कि फिर किसी ने बोला; देखो
कैसे लोग हैं घर में मन नहीं लगता, सारा
काम छोड़ छाड़कर यहाँ बैठे समय खराब कर रहे हैं ।
शिवजी ने बोला, पार्वती
मै न कहता था कि तुम्हें पृथ्वी पर जाकर संताप ही होगा; क्योंकि
चाहे अच्छा चाहे बुरा, लोगों
के पास कुछ न कुछ कहने के लिए है । अतः अब आओ वापिस कैलाश पर चलते हैं ।लोगों की जितनी बातें सुनोगी, उतना
ही विचलित हो जाओगी ।..........और यूँ इस तरह पार्वती जी को पृथ्वी भ्रमण लोगों की बातों की वजह से बीच में ही अधूरा छोडना पड़ा।.........सच है, कुछ
तो लोग कहेंगे और हर बात पे ही कहेंगे !!!
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