काल सर्प
दोष
निवारण
के
उपाय
:- By Astro कौशल पाण्डेय
फेसबुक
में कई मित्रों
ने कालशर्प की
शांति के बारे
में उपाय बताने
को कहा है
जिसे ध्यान में
रखकर कुछ सरल
उपाय बता रहा
हूँ आशा है
की ऐसा करने
से भोलेनाथ कृपा
अवश्य करेगे ..
दोस्तों
सबसे पहले तो
मै ये बता
दूँ की प्रत्येक
कुंडली में यह
योग अपना अशुभ
प्रभाव नहीं देता
है ..जैसा इसका
नाम है काल
और शर्प और
वैसे ही इसको
बतानेवाले हमारे ज्योतिषी बन्धु
..
आजकल
टीवी और अख़बारों
में खूब प्रचार
आ रहे है
काल शर्प की
शांति की बुकिंग
चल रही है
.क्या गारंटी है
की उनकी शांति
से आप को
लाभ होगा .. इसलिए
सावन के पवित्र
महीने में आप
खुद ये सरल
उपाय सच्चे मन
से भगवान शिव
के सम्मुख करे
..आप का कल्याण
होगा . जहाँ तक
मैंने इस विषय
में पढ़ा है
आप सब के
सामने प्रस्तुत कर
रहा हूँ
काल
सर्प दोष निवारण
के अनेक उपाय
हैं। इस योग
की शांति विधि
विधान के साथ
योग्य, विद्वान एवं अनुभवी
गुरु या पुरोहित
के परामर्श के
अनुसार करा लेने
से दोष का
निवारण हो जाता
है।
महाशिवरात्रि,
नाग पंचमी, ग्रहण
आदि के दिन
शिवालय में नाग
नागिन का चांदी
या तांबे का
जोड़ा अर्पित करें।
नवनाग
स्तोत्र का जप
करें :-
नवनाग
स्तोत्र इस प्रकार
से है :
अनंत
वासुकिं शेषं पद्मनाभं
च कंबल।
शंखपालं
धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।
एतानि
नवनामानि नागानां च महात्मानां
सायंकालेपठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः
नागदेव
की सुगंधित पुष्प
व चंदन से
ही पूजा करनी
चाहिए क्योंकि नागदेव
को सुगंध प्रिय
है।
ॐ
कुरुकुल्ये हुं फट्
स्वाहा का जाप
करने से सर्पविष
दूर होता है।
राहु-केतु के
बीज मंत्र का
21-21 हजार की संख्या
में जप कराएं,
हवन कराएं, कंबल
दान कराएं व
विप्र पूजा करें।
चांदी का छर्रा,
जो पोला न
हो अर्थात ठोस
हो, कपूर की
डली के साथ
पास में रखने
से दिन भर
सर्प भय नहीं
रहता। भगवान गणेश
केतु की पीड़ा
शांत करते हैं
और देवी सरस्वती
पूजन अर्चन करने
वालांे की राहु
से रक्षा करती
हैं। भैरवाष्टक का
नित्य पाठ करने
से काल सर्प
दोष से पीड़ित
लोगों को शांति
मिलती है। महाकाल
शिव के समक्ष
घृत दीप जलाकर
सर्प सूक्त का
नित्य पाठ करना
चाहिए।
नित्य
आसन पर बैठकर
रुद्राक्ष की माला
से नाग गायत्री
मंत्र का जप
करना चाहिए।
“ॐ नवकुलाय
विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो
सर्पः प्रचोदयात्”
काल
सर्प योग की
शांति का मुख्य
संबंध भगवान शिव
से है। क्योंकि
काल सर्प भगवान
शिव के गले
का हार है,
इसलिए किसी भी
शिव मंदिर में
काल सर्प योग
की शांति का
विधान करना चाहिए।
साथ ही पंचाक्षरीय
मंत्र ‘‘ॐ नमः
शिवाय” का
जप करना चाहिए।
लाल
किताब के सरल
उपाय ... कृपया एक उपाय
एक ही समय
करे और सभी
उपाय सुबह के
समय ही करे
.. धन्यवाद्
लाल
किताब में काल
सर्प योग का
नाम नहीं आता
है, किंतु लाल
किताब के नियमों
को ध्यान में
रखते हुए काल
सर्प के सही
उपाय किए जा
सकते हैं।
प्रथम
भाव में राहु
और सप्तम भाव
में केतु: यहां
राहु का उपाय
होगा। चांदी की
ठोस गोली पास
रखें।
द्वितीय
भाव में राहु
और अष्टम भाव
में केतु: यहां
केतु का उपाय
होगा। केतु दोरंगी
या बहुरंगी वस्तुओं
का कारक है,
अतः ऐसा कंबल
जो दोरंगा या
बहुरंगी हो, मंदिर
में दें।
तृतीय
भाव में राहु
और नवम भाव
में केतु: यहां
केतु का उपाय
होगा। यहां केतु
बृहस्पति के पक्के
भाव में है,
इसलिए सोना, जो
बृहस्पति का कारक
है, धारण करने
से केतु का
प्रभाव शुभ हो
जाएगा।
चतुर्थ
भाव में राहु
और दशम भाव
में केतु: इस
स्थिति में राहु
का उपाय नहीं,
बल्कि दशम भाव
के केतु का
उपाय करें। चांदी
की डिब्बी में
शहद भर कर
उसमें लाल किताब
को डालकर घर
से बाहर जमीन
में दबाएं।
पंचम
भाव में राहु
और एकादश भाव
में केतु: यहां
राहु का उपाय
होगा। घर में
चांदी का ठोस
हाथी रखना चाहिए।
अंदर से अगर
खोखला हो, तो
उस अंधेरे में
भी राहु का
प्रभाव रह जाता
है।
छठे
भाव में राहु
और बारहवें भाव
में केतु: बेशक
छठे भाव में
राहु हर मुसीबत
को काटने वाला
चूहा है, किंतु
फिर भी उसमें
कुछ बुरे प्रभाव
देने की प्रवृत्ति
होती है। राहु
के बुरे प्रभाव
को दूर करने
के लिए बुध
को शक्तिशाली करना
चाहिए। इसके लिए
बहन की सेवा
करें या कोई
फूल अपने पास
रखें। बुध को
इसलिए शक्तिशाली किया
जाता है कि
यहां पर काल
पुरुष कुंडली के
हिसाब से बुध
की कन्या राशि
आती है और
बुध राहु से
मित्रता रखता है।
सप्तम
भाव में राहु
और प्रथम भाव
में केतु: इस
स्थिति के काल
सर्प योग में
दोनों ग्रहों के
उपाय करने होंगे।
प्रथम भाव, काल
पुरुष कुंडली के
हिसाब से, मंगल
का घर है।
इसलिए केतु को
शांत करने के
लिए लोहे की
गोली पर लाल
रंग कर के
अपने पास रखना
चाहिए क्योंकि लाल
रंग मंगल का
कारक है, जिसके
द्वारा केतु को
दबाया जा सकता
है। सप्तम भाव
में राहु होने
पर बृहस्पति और
चंद्र के असर
को मिला कर
राहु के अशुभ
प्रभाव को कम
करना होगा। इसके
लिए चांदी की
एक डिब्बी में
गंगा जल या
बहती नदी या
नहर का पानी
डाल कर, जो
गुरु का कारक
है, उसमें चांदी
का एक चैकोर
टुकड़ा डाल कर,
ढक्कन लगा कर
घर में रखना
चाहिए। ध्यान रहे कि
डिब्बी का पानी
सूखे नहीं; अर्थात
डिब्बी में पानी
डालते रहें।
अष्टम
भाव में राहु
और द्वितीय भाव
में केतु: यहां
राहु का उपाय
करना होगा। राहु
के अशुभ प्रभाव
को दूर करने
के लिए 800 ग्राम
सिक्के के आठ
टुकड़े कर के
एक साथ बहते
पानी में डालने
चाहिए।
नवम
भाव में राहु
और तृतीय भाव
में केतु: यहां
केतु का उपाय
होगा। केतु के
मित्र गुरु की
सहायता से केतु
को शांत करने
के लिए तीन
दिन, लगातार, चने
की दाल बहते
पानी में डालनी
चाहिए।
दशम
भाव में राहु
और चतुर्थ भाव
में केतु: यहां
केतु के अशुभ
असर को दूर
करने के लिए
चतुर्थ भाव की
बुनियाद को मजबूत
करना होगा। इसके
लिए पीतल के
बरतन में बहती
नदी या नहर
का पानी भर
कर घर में
रखना चाहिए। ऊपर
पीतल का ढक्कन
होना चाहिए क्योंकि
काल पुरुष कुंडली
के हिसाब से
यहां पर गुरु
की उच्च की
राशि कर्क आती
है। पीतल का
बरतन तथा बहता
पानी दोनों ही
गुरु के कारक
हैं। केतु गुरु
का मित्र है,
अतः इस उपाय
से शुभता आ
जाएगी।
एकादश
भाव में राहु
और पंचम भाव
में केतु: यहां
राहु के अशुभ
प्रभाव को दूर
करना होगा, जिसके
लिए 400 ग्राम सिक्के के
दस टुकड़े करा
कर एक साथ
बहते पानी में
डालने चाहिए।
द्वादश
भाव में राहु
और छठे भाव
में केतु: यहां
दोनों की स्थिति
अशुभ होने के
कारण दोनों ग्रहों
का उपाय करना
चाहिए।
राहु
के दोष को
दूर करने के
लिए बोरी के
आकार की लाल
रंग की एक
थैली बना कर
उसमें सौंफ या
खांड भर कर
जातक को अपने
सोने वाले कमरे
में रखनी चाहिए।
ध्यान रहे कि
कपड़ा चमकीला न
हो क्योंकि लाल
रंग मंगल का
कारक है और
सौंफ तथा खांड
की मदद से
राहु के अशुभ
प्रभाव को दबाया
जाता है।
केतु
को शुभ करने
के लिए गुरु
को शक्तिशाली करना
चाहिए। गुरु की
कारक धातु सोना
पहनने से केतु
के फल में
शुभता आ जाएगी।
बहते पानी मंे
कोयला बहाना चाहिए।
नारियल के फल
बहते पानी में
बहाएं। रसोई घर
में बैठ कर
ही भोजन करें।
मुख्य द्वार पर
चांदी का स्वास्तिक
लगाना चाहिए। श्राद्ध
पक्ष में पितरों
का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक
करना चाहिए। श्रावण
मास में 30 दिन
तक महादेव का
अभिषेक करें।
नाग
पंचमी के दिन
चांदी या ताम्बे
का नाग-नागिन
बनवाकर पूजा करनी
चाहिए, पितरों को याद
करना चाहिए तथा
बहते पानी या
समुद्र में नाग
देवता का श्रद्धापूर्वक
विसर्जन करना चाहिए।
गुरु सेवा एवं
कुल देवता की
पूजा-अर्चना नित्य
करनी चाहिए। शयन
कक्ष में लाल
रंग के पर्दे,
चादर तथा तकियों
का उपयोग करें।
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