गुप्त
नवरात्री 9 जुलाई 2013 , दिन मंगलवार
से प्रारम्भ हो
रहे है -कौशल
पाण्डेय
By; Astro Kaushal Pandey
सनातन
धर्म के अनुसार
आषाढ़ तथा माघ
मास की नवरात्रि
को गुप्त नवरात्रि
कहा जाता है।
इस बार आषाढ़
मास की गुप्त
नवरात्रि का प्रारंभ
9 जुलाई 2013 , दिन मंगलवार
से हो रहा
है, आषाढ़ मास
की गुप्त नवरात्रि
का समय शाक्य
एवं शैव धर्मावलंबियों
के लिए पैशाचिक,
वामाचारी क्रियाओं के लिए
अधिक शुभ एवं
उपयुक्त होता है।
इसमें प्रलय एवं
संहार के देवता
महाकाल एवं महाकाली
की पूजा की
जाती है।
भारतीय
धार्मिक परंपरा में नवरात्रियों
का बहुत ही
महत्व है। नवरात्रा
या नौरात्रि के
दो अर्थ लिए
जा सकते हैं
- नौ रात या
नौ रातें। सृष्टि
का सृजन गहन
अंधकार में भूगर्भ
में या माता
के गर्भ में
ही होता है।
मानव योनि के
लिए गर्भ के
ये नौ महीने
नौ रातों के
समान होते हैं
जिनमें आत्मा, मानव शरीर
धारण करती है।
जिस प्रकार रात्रि
हमें विश्राम देती
हैं और हमारे
शरीर में ऊर्जा
का संचार करती
हैं, उसी प्रकार
नवरात्र की नौ
रातें हमारे शरीर
में अतिरिक्त शक्ति
व ऊर्जा का
संचार करती हैं
क्योंकि ये रातें
अति सूक्ष्म ऊर्जा
से परिपूर्ण होती
हैं। अतः इनका
उपयोग कर हम
अपने अंदर भी
नई ऊर्जाओं का
पुनः संचरण कर
जीवन में अधिकाधिक
लाभ प्राप्त कर
सकते हैं। गुप्त
नवरात्रि विशेष तौर पर
गुप्त सिद्धियां पाने
का समय है।
साधक इन दोनों
गुप्त नवरात्रि में
विशेष साधना करते
हैं तथा चमत्कारिक
शक्तियां प्राप्त करते हैं।
गुप्त
नवरात्रि में करे
इस महामंत्र का
पाठ और जागृत
करे अपने अन्दर
की छुपी हुयी
महाशक्ति को .. आशा है
की इस पाठ
से आप को
लाभ मिलेगा ..
श्री
दुर्गा सप्तसती में वर्णित
अत्यंत प्रभावशली सिद्धि कुन्जिका
स्त्रोत्र प्रस्तुत कर रहा
हूँ इस सिद्धि
कुन्जिका स्त्रोत्र का नित्य
पाठ करने से
संपूर्ण श्री दुर्गा
सप्तशती पाठ का
फल मिलता है
.. यह महामंत्र देवताओं
को भी दुर्लभ
नहीं है , इस
मंत्र का नित्य
पाठ करने से
माँ भगवती जगदम्बा
की कृपा बनी
रहती है ..
कुन्जिका
स्तोत्रं
शिव
उवाच
शृणु
देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन
मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः भवेत्॥1॥
न
कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं
न रहस्यकम्।
न
सूक्तं नापि ध्यानं
च न न्यासो
न च वार्चनम्॥2॥
कुंजिकापाठमात्रेण
दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति
गुह्यतरं देवि देवानामपि
दुर्लभम्॥ 3॥
गोपनीयं
प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं
मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण
संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्
॥4॥
अथ
मंत्र
ॐ
ऐं ह्रीं क्लीं
चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ
हुं क्लीं जूं
सः
ज्वालय
ज्वालय ज्वल ज्वल
प्रज्वल प्रज्वल
ऐं
ह्रीं क्लीं चामुण्डायै
विच्चे ज्वल हं
सं लं क्षं
फट् स्वाहा
॥
इति मंत्रः॥
नमस्ते
रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः
कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन ॥1॥
नमस्ते
शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन
॥2॥
जाग्रतं
हि महादेवि जपं
सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी
सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥
क्लींकारी
कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा
चण्डघाती च यैकारी
वरदायिनी॥ 4॥
विच्चे
चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण
॥5॥
धां
धीं धू धूर्जटेः
पत्नी वां वीं
वूं वागधीश्वरी।
क्रां
क्रीं क्रूं कालिका
देवि शां शीं
शूं मे शुभं
कुरु॥6॥
हुं
हु हुंकाररूपिण्यै जं
जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां
भ्रीं भ्रूं भैरवी
भद्रे भवान्यै ते
नमो नमः॥7॥
अं
कं चं टं
तं पं यं
शं वीं दुं
ऐं वीं हं
क्षं
धिजाग्रं
धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं
कुरु कुरु स्वाहा॥
पां
पीं पूं पार्वती
पूर्णा खां खीं
खूं खेचरी तथा॥
8॥
सां
सीं सूं सप्तशती
देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे॥
इदंतु
कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते
नैव दातव्यं गोपितं
रक्ष पार्वति॥
यस्तु
कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न
तस्य जायते सिद्धिररण्ये
रोदनं यथा॥
।
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे
कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्
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