Sunday, April 28, 2013


बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले

किसी ने कहा है -'बीती ताहि बिसार दे आगे की सुध ले ' क्षमाशीलता एक ईश्वरीय गुण है संसार के हर धर्म में क्षमा के मह्त्व को रेखांकित किया गया है हर सभ्य समाज में क्षमा की सराहना की गयी है क्षमा व्यक्ति को सामान्य मनुष्य की श्रेणी से उंचा उठा देती है क्षमा ह्रदय की विशालता का प्रतीक है

क्षमा करके एक अनिवर्चनीय आनंद की, स्वर्गीय सुख की अनुभूति होती है व्यक्ति दूसरों की ही नहीं, स्वयं अपनी दृष्टि में भी उंचा उठ जाता है क्षमा करना कमजोरी नहीं, बड़े दिलवालों का काम है हर पीर, पैगम्बर, अवतार महापुरुष ने अपने जीवन से क्षमाशीलता के उदाहरण एवं आदर्श प्रस्तुत किये हैं

दार्शनिक और विचारकों ने सुखी और सफल जीवन जीने के लिए एक सूत्र दिया है - 'फॉरगेट एंड फोरगिव' (Forget and Forgive) अर्थात भुला दो और क्षमा कर दो अनुभवी लोग बताते हैं कि जीवन का वास्तविक आनंद पाने के लिए मूल मंत्र है क्षमा इसमे से प्रत्येक के जीवन में प्रतिदिन कई घटनाएँ घटती हैं

अच्छी भी, बुरी भी अनेक अनुभव होते हैं मीठे भी और कड़वे भी हमें विभिन्न स्थितियों से गुजरना पड़ता है सब अच्छा ही अच्छा हो, ऐसा वास्तविक जीवन में कम ही होता है

इसके बावजूद जीवन को सुखमय, चिंता रहित, समृद्ध व् सफल बनाया जा सकता है 'फॉरगेट एंड फ़ारगिव ' (Forget and Forgive) के इस मूल मंत्र को अपनाकर और अपनी दिनचर्या में ढाल कर प्रकृति ने मानव को भूलने की क्षमता प्रदान करके उसे एक बहुत बड़ा वरदान दिया है यदि हममें भूल जाने की क्षमता होती तो जीवन की कड़वाहट, पराजय, क्षोभ, निराशा-हताशा, कबी कमजोरी, दुर्घटना और अप्रिय संवाद को बार बार याद करके हम अपना जीवन कुंठा से भर लेते हैं

हर वख्त कुढ़ते, चिडचिडाते, खीजते, अशांत-उद्विंग्न और अवसाद ग्रस्त बने रहते मनुष्य का स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि वह अपनी असफलताओं को अधिक याद करता है और उपलब्धियों को कम इस प्रकार हमारा जीवन ही निरंतर कष्टमय और घुटनभरा ही जाता है

यदि हमारी भूल जाने की प्रकृति होती तो बचपन से लेकर अब तक हमारी सारी स्मृतियां हमारे भीतर हर समय उमड़ती घुमड़ती रहती हमारे मन मस्तिष्क को निरंतर अच्छान्दित किये रहती तब भला हम अपने भविष्य तो क्या, वर्तमान में भी कुछ उपयोगी नहीं कर पाते

यह हमारी प्रकृति प्रदत्त भूल जाने की सुविधा ही है, जो हमारे मन-मस्तिष्क को पुरानी यादों के इस मकड़जाल से बचाए रखती है प्रकृति से प्राप्त इस वरदान का हम क्रियात्मक उपयोग करें सकारात्मक प्रयोग करें सकारात्मक प्रयोग करें दिन प्रतिदिन की असफलताओं और दूसरों से मिली पीड़ा को भूल जाने का अभ्यास करें

इसको भूलने से हम अपने भीतर एक निरंतर आक्रोश पालते हैं अपने मन मस्तिष्क को अशांत एवं उद्वेलित तथा स्वयं को असहज बनाए रखते हैं, जो हमारी शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक शांति के लिए नितांत हानिकारक हो सकता है अतः भुला दीजिये सारी कड़वाहटों को और सुख की नींद सोइए

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