शुभ कामना
शुभ
कामना सुनने में
यह कुछ अटपटा
सा लगता है
। इस विषय
पर क्या उपदेश
देना? ऐसा तो
सब एक दूसरे
के लिए अभिवादन
में शुभकामनाओं में
कहते ही हैं
। लेकिन कभी
सोचा है कि
इस शुभकामना का
क्या अर्थ है
? कभी इस पर
विचार किया है
कि जीवन को
सुखमय बनाने के
किसी बहुत बड़े
आशीर्वाद या वैभव
की जरूरत नहीं
है । बेहद
छोटी छोटी बातें
इसे सुखमय या
दुःखमय बना देती
हैं ।
एक
प्रसिद्ध कहावत है 'अपना
आज संभालो, कल
अपने आप सुरक्षित
हो जाएगा ।'
आज औद्द्योगिक व्
आधुनिक जीवन में
हमारा खान पान,
आचार विचार सब
कुछ अप्राकृतिक हो
गया है ।
यदि हम इन
पर ध्यान नहीं
दें तो हमारे
जीवन की अवधि
कम हो जाती
है, स्वास्थ्य खराब
हो जाता है
। सुखमय जीवन
दुःखमय होने लगता
है । लेकिन
कुछ बेहद साधारण
तौर-तरीके अपनाकर
हम अपने जीवन
को सुखी, मंगलमय,
दीर्घ व् तनावरहित
बना सकते हैं
।
उदाहरण
के लिए प्रातःकाल
सूर्योदय से पहले
उठने वाले को
उत्तम स्वास्थ्य की
प्राप्ति होती है
। इसीलिए बुद्धिमान
व्यक्ति उसका उपयोग
करते हैं ।
शास्त्रों में लिखा
है कि सूर्योदय
से डेढ़ घंटा
पूर्व शैया का
त्याग कर देना
उत्तम होता है
। प्रातःकाल जल्दी
उठिए, घूमने जाईये,
व्यायाम करिए, यदा-कदा शरीर
की मालिश कर
लीजिये । ऐसी
सामान्य सी लगने
वाली बातों का
हमारी ख़ुशी और
हमारे व्यक्तित्व पर
गहरा असर पड़ता
है ।
अपने दैनिक जीवन में हमेशा व्यस्त रहने का प्रयास करना चाहिए । जब कभी अवकास हो, कुछ सामाजिक व् सार्वजनिक हित का काम करना चाहिए । इससे बड़ी मानसिक राहत मिलती है । लेकिन इन सब के बीच थोड़ा समय निकाल कर हमें रोजाना अपने बारे में भी विचार जरूर करना चाहिए । अपनी समस्याओं के समाधान के बारे में, अपने व्यवहार के बारे में थोड़ा चिंतन करना चाहिए । जो लोग आलसी नहीं हैं वे हर समय उत्साह से भरे रहते हैं। जो किसी न किसी कार्य में संलग्न रहते हैं- वे प्रायः दीर्घ जीवन व्यतीत करते हैं । वैसे तो मृत्यु और जीवन का समय निश्चित नहीं है, घटाना-बढ़ाना
किसी के बस की बात भी नहीं है, लेकिन जीवन
को सुन्दर बनाना, सफ़र को
सुहावना और आनंदमय बनाना तो आपके बस में है । कोई भी बिमारी अकस्मात नहीं आती, पहले उसकी
जड़ बनती है तभी वह पनपती है । मानसिक परेसानियाँ शरीर को जर्जर और खंडहर बनादेती हैं- चिढ़चिड़ा
स्वभाव, बात बात
में झुंझलाना, क्रोधित
होना, मीन-मेख
निकालना एक भयंकर रोग है । इससे जितनी जल्दी हो सके छुटकारा पाना चाहिए, अन्यथा बीमारियाँ जल्दी शुरू हो सकती हैं । कभी किसी बात का वहम नहीं करना चाहिए क्योंकि वहम बीमारियों की एक बड़ी वजह है ।
चिंताग्रस्त व् तनावग्रस्त नहीं रहना चाहिए, हमेशा प्रसन्नता से रहना चाहिए, दूसरों के
दुःख दर्द में काम आने की कोशिश करनी चाहिए । स्वार्थ त्याग कर रोगग्रस्त व् अभावग्रस्त लोगों की सहायता करनी चाहिए । कभी विश्वाश्घाती व् बेइमान नहीं होना चाहिए । कथनी-करनी एक हो, अपने स्वार्थ के कारण व् अपनी महत्वकांक्षा के वशीभूत होकर किसी का अहित नहीं करना चाहिए । अपने पद या स्टेट्स के मद में कभी किसी का तिरस्कार नहीं करना चाहिए ।
जीवन संबंधों की खोज के विशेषज्ञ डाक्टर कार्लसन का कहना है कि, 'अल्प मृत्यु और बुढ़ापे
को रोकने के लिए सौ दवाओं की एक दवा है- सरल जीवन
। जिस कार्य से शरीर और मन पर अत्यधिक दबाव पड़े उसे छोड़ देना चाहिए । अपनी शक्ति, सामर्थ्य,
क्षमता तथा उम्र के अनुसार अपने दैनिक कार्यक्रम में आवश्यकतानुसार परिवर्तन करते रहना चाहिए ।' अपनी व्यस्तता में से अन्कास का समय निकालिए । आमोद-प्रमोद, मनोरंजन
के लिए कुछ समय अवश्य होना चाहिए । इस प्रकार माहौल बदलने के लिए
अपनी दिनचर्या में सभी बातों का समावेश
होना चाहिए । इससे तनाव कम होता है । तनाव दूर करने के लिए बागवानी, संगीत या
वाचनालय अथवा व्यामशाला जाने जैसे शोक विकसित किये जा सकते हैं ।
जीवन एक गणित है, जिसमें मित्रों को जोड़ना है, दुश्मनों की संख्या को घटाना है, सुखों का गुणा और दुःखों का विभाजन करना है । यह मंगल सूत्र जीवन को सफल, स्वस्थ व् मंगलमय करने के लिए पर्याप्त है । जो व्यक्ति प्रकृति के साथ हाथ मिलाकर चलता है, उसे दुःख दर्द नहीं घेरते ।
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