श्रावण के
महीने
में
शिवलिंग
पर
दूध
चढाने
का
वैज्ञानिक
महत्व--
यहाँ
दो पात्र हैं
: एक है भारतीय
और एक है
इंडियन ! आइए देखते
हैं दोनों क्या
बतिया रहे हैं
:
इंडियन
: ये सावन के
महीनो में पर
जो तुम इतना
दूध चढाते हो
शिवलिंग पर, इस
से अच्छा तो
ये हो कि
ये दूध जो
बहकर नालियों में
बर्बाद हो जाता
है, उसकी बजाए
गरीबों मे बाँट
दिया जाना चाहिए
! तुम्हारे शिव जी
से ज्यादा उस
दूध की जरुरत
देश के गरीब
लोगों को है.
दूध बर्बाद करने
की ये कैसी
आस्था है ?
भारतीय
: सीता को ही
हमेशा अग्नि परीक्षा
देनी पड़ती है,
कभी रावण पर
प्रश्न चिन्ह क्यूँ नहीं
लगाते तुम ?
इंडियन
: देखा ! अब अपने
दाग दिखने लगे
तो दूसरों पर
ऊँगली उठा रहे
हो ! जब अपने
बचाव मे कोई
उत्तर नहीं होता,
तभी लोग दूसरों
को दोष देते
हैं । सीधे-सीधे क्यूँ
नहीं मान लेते
कि ये दूध
चढाना और नालियों
मे बहा देना
एक बेवकूफी से
ज्यादा कुछ नहीं
है !
भारतीय
: अगर मैं आपको
सिद्ध कर दूँ
की सावन के
महीनो शिवलिंग पर
दूध चढाना बेवकूफी
नहीं समझदारी है
तो ?
इंडियन
: हाँ बताओ कैसे
? अब ये मत
कह देना कि
फलां वेद मे
ऐसा लिखा है
इसलिए हम ऐसा
ही करेंगे, मुझे
वैज्ञानिक तर्क चाहिएं ।
भारतीय
: ओ अच्छा, तो
आप विज्ञान भी
जानते हैं ? कितना
पढ़े हैं आप
?
इंडियन
: जी, मैं ज्यादा
तो नहीं लेकिन
काफी कुछ जानता
हूँ, एम् टेक
किया है, नौकरी
करता हूँ. और
मैं अंध विशवास
मे बिलकुल भी
विशवास नहीं करता,
लेकिन भगवान को
मानता हूँ ।
भारतीय
: आप भगवान को
मानते तो हैं
लेकिन भगवान के
बारे में जानते
नहीं कुछ भी
। अगर जानते
होते, तो ऐसा
प्रश्न ही न
करते ! आप ये
तो जानते ही
होंगे कि हम
लोग त्रिदेवों को
मुख्य रूप से
मानते हैं : ब्रह्मा
जी, विष्णु जी
और शिव जी
(ब्रह्मा विष्णु महेश) ?
इंडियन
: हाँ बिलकुल मानता
हूँ ।
भारतीय
: अपने भारत मे
भगवान के दो
रूपों की विशेष
पूजा होती है
: विष्णु जी की
और शिव जी
की ! ये शिव
जी जो हैं,
इनको हम क्या
कहते हैं - भोलेनाथ,
तो भगवान के
एक रूप को
हमने भोला कहा
है तो दूसरा
रूप क्या हुआ
?
इंडियन
(हँसते हुए) : चतुर्नाथ !
भारतीय
: बिलकुल सही ! देखो, देवताओं
के जब प्राण
संकट मे आए
तो वो भागे
विष्णु जी के
पास, बोले "भगवान
बचाओ ! ये असुर
मार देंगे हमें"
। तो विष्णु
जी बोले अमृत
पियो । देवता
बोले अमृत कहाँ
मिलेगा ? विष्णु जी बोले
इसके लिए समुद्र
मंथन करो !
तो
समुद्र मंथन शुरू
हुआ, अब इस
समुद्र मंथन में
कितनी दिक्कतें आई
ये तो तुमको
पता ही होगा,
मंथन शुरू किया
तो अमृत निकलना
तो दूर विष
निकल आया, और
वो भी सामान्य
विष नहीं हलाहल
विष !
भागे
विष्णु जी के
पास सब के
सब ! बोले बचाओ
बचाओ !
तो
चतुर्नाथ जी, मतलब
विष्णु जी बोले,
ये अपना डिपार्टमेंट
नहीं है, अपना
तो अमृत का
डिपार्टमेंट है और
भेज दिया भोलेनाथ
के पास !
भोलेनाथ
के पास गए
तो उनसे भक्तों
का दुःख देखा
नहीं गया, भोले
तो वो हैं
ही, कलश उठाया
और विष पीना
शुरू कर दिया
!
ये
तो धन्यवाद देना
चाहिए पार्वती जी
का कि वो
पास में बैठी
थी, उनका गला
दबाया तो ज़हर
नीचे नहीं गया
और नीलकंठ बनके
रह गए.
इंडियन
: क्यूँ पार्वती जी ने
गला क्यूँ दबाया
?
भारतीय
: पत्नी हैं ना,
पत्नियों को तो
अधिकार होता है
.. किसी गण की
हिम्मत होती क्या
जो शिव जी
का गला दबाए......अब आगे
सुनो ....फिर बाद
मे अमृत निकला
! अब विष्णु जी
को किसी ने
invite किया था ???? मोहिनी रूप
धारण करके आए
और अमृत लेकर
चलते बने ।
और
सुनो - तुलसी स्वास्थ्य के
लिए अच्छी होती
है, स्वादिष्ट भी,
तो चढाई जाती
है कृष्ण जी
को (विष्णु अवतार)
।
लेकिन
बेलपत्र कड़वे होते
हैं, तो चढाए
जाते हैं भगवान
भोलेनाथ को !
हमारे
कृष्ण कन्हैया को
56 भोग लगते हैं,
कभी नहीं सुना
कि 55 या 53 भोग
लगे हों, हमेशा
56 भोग !
और
हमारे शिव जी
को ? राख, धतुरा
ये सब चढाते
हैं, तो भी
भोलेनाथ प्रसन्न !
कोई
भी नई चीज़
बनी तो सबसे
पहले विष्णु जी
को भोग !
दूसरी
तरफ शिव रात्रि
आने पर हमारी
बची हुई गाजरें
शिव जी को
चढ़ा दी जाती
हैं......
अब
मुद्दे पर आते
हैं........इन सबका
मतलब क्या हुआ
?
विष्णु
जी हमारे पालनकर्ता
हैं, इसलिए जिन
चीज़ों से हमारे
प्राणों का रक्षण-पोषण होता
है वो विष्णु
जी को भोग
लगाई जाती हैं
! और शिव जी
?
शिव
जी संहारकर्ता हैं,
इसलिए जिन चीज़ों
से हमारे प्राणों
का नाश होता
है, मतलब जो
विष है, वो
सब कुछ शिव
जी को भोग
लगता है !
इंडियन
: ओके ओके, समझा
!
भारतीय
: आयुर्वेद कहता है
कि वात-पित्त-कफ इनके
असंतुलन से बीमारियाँ
होती हैं और
श्रावण के महीने
में वात की
बीमारियाँ सबसे ज्यादा
होती हैं ।
श्रावण के महीने
में ऋतू परिवर्तन
के कारण शरीर
मे वात बढ़ता
है । इस
वात को कम
करने के लिए
क्या करना पड़ता
है ?
ऐसी
चीज़ें नहीं खानी
चाहिएं जिनसे वात बढे,
इसलिए पत्ते वाली
सब्जियां नहीं खानी
चाहिएं !
और
उस समय पशु
क्या खाते हैं
?
इंडियन
: क्या ?
भारतीय
: सब घास और
पत्तियां ही तो
खाते हैं. इस
कारण उनका दूध
भी वात को
बढाता है ! इसलिए
आयुर्वेद कहता है
कि श्रावण के
महीने में दूध
नहीं पीना चाहिए
।
इसलिए
श्रावण मास में
जब हर जगह
शिव रात्रि पर
दूध चढ़ता था
तो लोग समझ
जाया करते थे
कि इस महीने
मे दूध विष
के सामान है,
स्वास्थ्य के लिए
अच्छा नहीं है,
इस समय दूध
पिएंगे तो वाइरल
इन्फेक्शन से बरसात
की बीमारियाँ फैलेंगी
और वो दूध
नहीं पिया करते
थे !
इस
तरह हर जगह
शिव रात्रि मनाने
से पूरा देश
वाइरल की बीमारियों
से बच जाता
था ! समझे कुछ
?
इंडियन
: omgggggg !!!! यार फिर
तो हर गाँव
हर शहर मे
शिव रात्रि मनानी
चाहिए, इसको तो
राष्ट्रीय पर्व घोषित
होना चाहिए !
भारतीय
: हम्म....लेकिन ऐसा नहीं
होगा भाई कुछ
लोग साम्प्रदायिकता देखते
हैं, विज्ञान नहीं
! और सुनो. बरसात
में भी बहुत
सारी चीज़ें होती
हैं लेकिन हम
उनको दीवाली के
बाद अन्नकूट में
कृष्ण भोग लगाने
के बाद ही
खाते थे (क्यूंकि
तब वर्षा ऋतू
समाप्त हो चुकी
होती थी) ।
एलोपैथ कहता है
कि गाजर मे
विटामिन ए होता
है आयरन होता
है लेकिन आयुर्वेद
कहता है कि
शिव रात्रि के
बाद गाजर नहीं
खाना चाहिए इस
ऋतू में खाया
गाजर पित्त को
बढाता है !
तो
बताओ अब तो
मानोगे ना कि
वो शिव रात्रि
पर दूध चढाना
समझदारी है ?
इंडियन
: बिलकुल भाई, निःसंदेह
! ऋतुओं के खाद्य
पदार्थों पर पड़ने
वाले प्रभाव को
ignore करना तो बेवकूफी
होगी ।
भारतीय
: ज़रा गौर करो,
हमारी परम्पराओं के
पीछे कितना गहन
विज्ञान छिपा हुआ
है ! ये इस
देश का दुर्भाग्य
है कि हमारी
परम्पराओं को समझने
के लिए जिस
विज्ञान की आवश्यकता
है वो हमें
पढ़ाया नहीं जाता
और विज्ञान के
नाम पर जो
हमें पढ़ाया जा
रहा है उस
से हम अपनी
परम्पराओं को समझ
नहीं सकते !
जिस
संस्कृति की कोख
से मैंने जन्म
लिया है वो
सनातन (eternal) है,
विज्ञान को परम्पराओं
का जामा इसलिए
पहनाया गया है
ताकि वो प्रचलन
बन जाए और
हम भारतवासी सदा
वैज्ञानिक जीवन जीते
रहें ।
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