Thursday, February 28, 2013


सबसे महत्वपूर्ण है विवाह संस्कार

संस्कार भारतीय संस्कृति के मूलाधार हैं चौसठ कलाएं और सोलह संस्कार जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए हैं गर्भाधान से लेकर अंतेष्टि तक सभी सोलह संस्कारों में 'विवाह संस्कार' सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि तदोपरांत गृहस्थ धर्म ही सोलह संस्कारों को पूर्णता प्रदान करता है विवाह को संस्कारों में विशेष स्थान दिया गया है शक्ति और शिव अर्थात स्त्री और पुरुष के अनन्य प्रेम से सृष्टि का क्रम आगे बढ़ता है इस यात्रा का माध्यम बनता है विवाह

वैदिक रीति के अनुसार आदर्श विवाह में परिजनों के सामने अग्नि को अपना साक्षी मानते हुए सात फेरे लिए जाते हैं प्रारम्भ में कन्या आगे और वर पीछे चलता है भले ही माता पिता कन्या दान कर दें, किन्तु विवाह की पूर्णता सप्तपदी के पश्चात तभी मानी जाती है, जब वर के साथ सात कदम चल कर कन्या अपनी स्वीकृति दे देती है शास्त्रों ने अंतिम अधिकार कन्या को ही दिया है पत्नी बनने से पूर्व कन्या वर से  यज्ञ  दान में उसकी सहमति, आजीवन भरण-पोषण, धन की सुरक्षा,  सम्पति खरीदने में सम्मति, समयानुकूल व्यवस्था  तथा सखी सहेलियों में अपमानित करने के सात वचन कन्या द्वारा वर से भराए जाते हैं इसी प्रकार कन्या भी पत्नी के रूप में अपने दायीत्वों को पूरा करने के लिए सात वचन भरती है

सप्तपदी में पहला पग भोजन व्यवस्था के लिए,
दूसरा शक्ति संचय, आहार तथा संयम के लिए,
तीसरा धन की प्रबंध व्यवस्था हेतु,
चौथा आत्मिक सुख के लिए,
पांचवां पशुधन संपदा हेतु,
छटा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिये तथा अंतिम
सातवें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव  साथ चलने का वचन लेती है

तथा सहर्ष जीवन पर्यंत पति के प्रत्येक कार्य में सहयोग देने की प्रतिज्ञा करती है आखिरकार विवाह में "सप्तपदी" अग्नि के सात फेरे तथा वर वधु द्वारा सात वचन ही क्यों निर्धारित किये गए हैं ? इनकी संख्या सात से कम या अधिक भी हो सकती थी ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय संस्कृत में सात की संख्या मानव जीवन के लिए बहुत विशिष्ट मानी गयी हैं वर वधु सातों सातों वचनों को  कभी भूले और वे उनकी दिनचर्या में सामिल हो जाएँ ऐसा माना जाता है, क्योंकि वर्ष महीनों के काल खण्डों को सात दिनों के सप्ताह में विभाजित किया गया है।

सूर्य के रथ में सात घोड़े होते हैं जो सूर्य के प्रकाश से मिलने वाले सात रंगों में प्रकट होते हैं आकाश में इन्द्रधनुष के समय वे सातों रंग स्पष्ट दिखाई देते हैं दांपत्य जीवन में इन्द्रधनुषी रंगों की सतरंगी छटा बिखरती रहे इस कामना से सप्तपदी की प्रक्रिया पूरी की जाती है "मैत्री सप्त्पदीन मुच्यते" अर्थात एक साथ सिर्फ सात कदम चलने मात्र से ही दो अनजान व्यक्तियों में भी मैत्री भाव उत्तपन्न हो जाता है अतः जीवन भर का संग निभाने के लिए प्रारम्भिक सात पदों की गरिमा एवं प्रधानता को स्वीकार किया गया है सातवें  पग में वर, कन्या से कहता है कि, "हम दोनों सात पद चलने के पश्चात परस्पर सखा बन गए हैं "

जीवन में बरसें आनंद के सुर - वर वधु विवाह में परस्पर मिलकर यह कामना करते हैं कि उनके द्वारा मिलकर उठाये गए सात पगों में प्रारम्भ जीवन में आनंददायी संगीत के सभी सुर समाहित हो जाएँ तांकि  वो आजीवन प्रसन्न रह सकें मन, वचन और कर्म के प्रत्येक  तल पर  पति पत्नी के रूप में हमारा हर कदम एक साथ उठे इसलिए आज अग्निदेव के समक्ष हम साथ सात कदम रखते हैं हमारे जीवन में कदम कदम पर सप्त ऋषि हम दोनों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें तथा सदैव हमारी रक्षा करें

सातों लोको में हमारी कीर्ती हो हम अपने गृहस्थ धर्म का जीवन पर्यंत पालन करते हुए एक दुसरे के प्रती सदैव एकनिष्ठ रहें और पति पत्नी के रूप में जीवन पर्यंत हमारा यह बंधन सात समुन्दर पार तक अटूट बना रहे तथा हमारा प्यार सात समुन्दरों कि भांति विशाल और गहरा हो हमारे प्राचीन मनीषियों ने बहुत सोच समझ कर विवाह में इन परम्पराओं की नीव रखी थी

No comments:

Post a Comment