Friday, February 22, 2013


एक बोध कथा
संतोष शांति की झलक

बात तब की है, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। बंगाल के न्यायाधीश नीलमाधव बैनर्जी अपनी न्यायप्रियता, सत्यनिष्ठा दयालुता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। अपने जीवन काल में उन्होंने अपने इन्हीं गुणों के कारण बेहद सम्मान प्रसिद्धि पाई। वृद्धावस्था में उन्हें प्राण घातक रोग ने जकड़ लिया तथा उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया।

बीमारी के कारण उनके शरीर में असहनीय पीड़ा होने लगी। वे बार-बार ईश्वर से प्रार्थना करते और कहते, ‘हे ईश्वर, अब मुझसे यह पीड़ा सही नहीं जाती। मुझे इस रोगग्रस्त शरीर से मुक्ति देकर अपने पास बुला लो।लेकिन इस तरह मृत्यु को बुलाने से वह थोड़े ही आती है, उन्हें पीड़ा भुगतनी पड़ रही थी।

एक दिन वह सोचने लगे कि मुझसे जरूर कुछ कुछ गलती हुई है, जिसकी मुझे पीड़ा के रूप में सजा भुगतनी पड़ रही है। बहुत सोचने पर उन्हें याद आया कि एक बार बीमा कराते समय उन्होंने अपनी मधुमेह की बीमारी को बेहद सफाई से छिपाकर बीमा करा लिया था। यह याद आते ही उन्हें अपने शरीर में होने वाली पीड़ा का कारण समझ में गया और उन्होंने तभी बीमा अधिकारी को बुलाया और उससे बोले, ‘भैया, मैंने जब आपसे बीमा कराया था, उस समय मैं मधुमेह से ग्रस्त था। किंतु उस समय मैंने यह बात आपको नहीं बताई थी। इसलिए मेरा यह बीमा रद्द कर दिया जाए। मेरे मरने के बाद कोई भी इस बीमा राशि का अधिकारी नहीं होगा। मैंने न्यायाधीश के रूप में हमेशा सत्य का आचरण किया, किंतु व्यक्तिगत जीवन में मैं उस पर टिके रहने से लोभवश चूक गया। इसी कारण आज यह कष्ट भोग रहा हूं।उनके कहने पर बीमा अधिकारी ने उनका बीमा रद्द कर दिया। बीमा रद्द होने के बाद उनके चेहरे पर संतोष शांति की झलक दिखाई दी। इसके बाद उसी रात उन्होंने प्राण त्याग दिए।

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