मनीषी इन्द्रियों को अश्व बताते हैं
और विषयों को उन अश्वों के विचारने का मार्ग । इन इन्द्रियरूपी घोड़ों को वशीभूत किये बिना ब्रह्मज्ञान संभव नहीं है । स्थूल विषयों में लिप्त इन्द्रियां अंतरात्मा को देखने में असमर्थ होती हैं । इसलिए यदि कोई मुमुक्ष ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करना चाहता है, तो उसे अपने इन्द्रियरूपी घोड़ों को विषय रूपी गोचर से विमुख कर अंतर्मुखी बनाना चाहिए ।
Upanishads explains that to achieve the ultimate reality i
1. The body
should be considered as a Chariot
2. The sense
as the horse
3. The intellect
taken as a Charioteer
4. The mind as
the reins and
The soul as the
Lord seated in the vehicle
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