Sunday, January 20, 2013


एक बोध कथा
"जिंदगी का केक"

एक कन्या अपनी माँ के पास अपनी परेशानी का बखान कर रही थी l वो परीक्षl में फेल हो गई थी l सहेली से झगड़ा हो गया l मनपसंद ड्रेस प्रैस कर रही थी वो जल गई l रोते हुए बोली ,मम्मी ,देखो ना , मेरे साथ सब कुछ उलटा - पुल्टा हो रहा है l माँ ने मुस्कराते हुए कहा, यह उदासी और रोना छोड़ो, चलो मेरे साथ रसोई में , "तुम्हारा मनपसंद केक बनाकर खिलाती हूँ" l

कन्या का रोना बंद हो गया और हंसते हुये बोली, "केक तो मेरी मनपसंद मिठाई है" l कितनी देर में बनेगा l कन्या ने चहकते हुए पूछा l माँ ने सबसे पहले मैदे का डिब्बा उठाया और प्यार से कहा, ले पहले मैदा खा ले l कन्या मुंह बनाते हुए बोली, इसे कोई खाता है भला l माँ ने फिर मुस्कराते हुये कहा, "तो ले सौ ग्राम चीनी ही खा ले" l एसेंस और मिल्कमेड का डिब्बा दिखाया और कहा लो इसका भी स्वाद चख लो l

"माँ" आज तुम्हें क्या हो गया है l जो मुझे इस तरह की चीजें खाने को दे रही हो ?

माँ ने बड़े प्यार और शांति से जवाब दिया, "बेटा" केक इन सभी बेस्वादी चीजों से ही बनता है और ये सभी मिलकर ही तो केक को स्वादिष्ट बनाती हैं l

मैं तुम्हें सिखाना चाह रही थी कि "जिंदगी का केक" भी इसी प्रकार की बेस्वाद घटनाओं को मिलाकर बनाया जाता है l फेल हो गई हो तो इसे चुनौती समझो मेहनत करके पास हो जाओ l सहेली से झगड़ा हो गया है तो अपना व्यवहार इतना मीठा बनाओ कि फिर कभी किसी से झगड़ा हो l यदि मानसिक तनाव के कारण "ड्रेस" जल गई

तो आगे से सदा ध्यान रखो कि मन की स्थिति हर परिस्थिति में अच्छी हो l बिगड़े मन से काम भी तो बिगड़ेंगे l कार्यों को कुशलता से करने के लिए मन के चिंतन को कुशल बनाना अनिवार्य है l अब उस बच्ची को जिंदगी का केक बनाने की विधि समझ में आती जा रही थी l

No comments:

Post a Comment