Monday, October 15, 2012


अध्यात्मिक शरीर विज्ञान    
 

परमेश्वर की स्वरूपभूता अर्थात जगत की उत्तपति, स्थिति और ले की हेतूभूता ब्रह्मा, विष्णु, और शिवरूपा शक्ति । कैसी शक्ति ? सत्व, राजस, और तामस से युक्त । सत्वादी गुन्रूप उपाधि के कारण ही वह

सत्व    से     विष्णु
राजस से ब्रह्मा  और
तामस से महादेव कहा जाता है ।

ये सब स्वतः निरुपाधिक ब्रह्म से तो उपलब्ध हो ही नहीं सकते । परब्रह्म के ही सृष्टि आदि कार्यों को करते हैं , इसलिए अवास्थावेद के आधार पर इनमे शक्ति- उचय्भेद का व्यवहार होता है, तात्विक भेद के कारण नहीं । अर्थात परब्रह्म पहिले तो इश्वर स्वरुप मायामय रूप से स्थित होता है } फिर यह मूर्तरूप हो कर तीन प्रकार का हो जाता है । उस त्रिविध रूप में वह जगत की उत्त्पत्ति, स्थिति, संहार नियमादी कार्या करता है ।

ये तीनो देवता - तेज़, जल, और अन्न - पुरुष को प्राप्त हो कर त्रिवृत, त्रिवृत हो जाते हैं । यही है "अध्यात्मिक शरीर विज्ञान "

जो भोजन हम करते हैं वह तीन प्रकार का हो जाता है ।

उसका स्थूल भाग मॉल हो जाता है ।
मध्य भाग मांस यस चर्बी बन जाता है । और जो
सूक्षम भाग है वह मन हो जाता है ।

(कहावत है कि जैसा खाओ अन्न वैसा हो मन )

The Mind is the internal Organ, and "Mind is surely made of food, vital force is made of water, and speech is made of fire"- "Of curd when it is churned, that which is its subtle part rises upward. That becomes clarified butter. In this very way, of food when
it is eaten, those which is the subtle part, that rises upward, and that becomes mind"

The mind is a largely uncharted world a system of unimaginable complexity and extraordinary powers. Despite the Neurologists and the Psychologists, it remains as much of a mystery today as ever. The Scientist themselves confess to be groping in the dark in this field of human knowledge.

The mind is the crucial conduit between body and soul. In fact experiencing a tangible rapport with the invisible spirit soul is utterly dependent upon the alert, subtle mind aided by analytical intelligence. The ten senses of information and action can, at the most, execute the mind’s instructions. Emotion is the external display of one’s mental status. From inner purification and change to external well being, the key is holistic healing and caring. Spirituality has, since time immemorial, provided answers to the most complex questions. So it has several tips to offer to tend to body, mind and soul. by carefully studying one’s diet, sleep and work schedules and recreational indulgences, the discerning counselor can safely detect what even sophisticated bio-medical gadgets and technicians may, at the most, merely suspect. Quality eating combined with reason and restraint cures; whereas quantity consumption just for gratification can prove to be eventually harmful to vital bodily organs. There’s truth in the saying, “you are what you eat”.

 पीया हुआ जल तीन प्रकार का हो जाता है ।

इसका स्थूल भाग मूत्र
मध्य भाग रक्त   और
सूक्षम भाग प्राण हो जाता है 

खाया हुआ घृत आदि तीन प्रकार का हो जाता है ।

इसका स्थूल भाग हड्डी हो जाता है ।
मध्य भाग मज्जा  ब  जाता है ।
सूक्ष्म भाग वाणी हो जाता है ।

इसीलिए मन अन्नमय है, प्राण जय्मय है, और वाणी तेजोमयी है ।

जैसे मथे हुए दही का सूक्षम भाग नवनीत बन कर ऊपर आ जाता है और वाही मन बनता है । यदि तुम्हारी जीविका भ्रष्ट साधनों से चलती है तो तुम उससे होने वाले क्षय और उप्पद्रव को देख ही नहीं सकते । देखो भी तो उस पर ध्यान न दोगे  । दूसरे ध्यान दिलाएंगे भी तो भ्रष्टता का  समर्थन  करोगे  या चुप लगा जाओगे ।
 
इसी प्रकार पिए हुए जल का सूक्ष्म भाग  ऊपर आ कर प्राण बनता है । जल को इसीलिए तो प्राण और बादल को इसीलिए प्रजन्य कहते हैं । और भक्षण किये हुए तेज़ या घृत का सूक्षम भाग ऊपर आ कर वाणी का रूप लेता है । इसी के बल पर ऋषि मुनि शाप देकर किसी को भसम तक कर डालते हैं

मन  व्यक्ती  के संकल्प -विकल्प और विचारों को मन कहते हैं । मन विचारों का समूह है और सब विचारों से 'मैं ' का विचार ही  मन की जड़ है । मन का अपना कोई रंग रूप नहीं है । जिस रंग में रंगों वैसा ही  रंगने को तैयार है । मन की उड़ान बहूत ऊंची है ।  मन व्यक्ति को आशा-तृष्णा रूपी दो श्वानो के पीछे दौडाता ही रहता है । जिस वस्तु की ओर हमारा ध्यान होगा । शरीर की त्वचा से मिलकर मन को सर्दी गर्मी का अनुभव होता है । मन पारे की तरह बड़ा चंचल है । यदि थोड़ा सा पारा भूमि पर रख दो तो इसके कई छोटे छोटे टुकड़े हो जायेंगे जो अलग अलग दिशाओं में भागेंगे । दोबारा इनको इक्कठा करना कोई आसान कार्य नहीं है । मन बाली है और इसको एकाग्र करना कठिन है । लेकिन अभ्यास और वैराग्य के द्वारा ही मन को लगाम डाली जा सकती है ।
    
 

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