ईश्वर है क्या ?
सुना है ईश्वर है ! किसी किसी ने ईश्वर को देखा भी है । जिसने उन्हें देखा है उनसे मिलने का सौभाग्य आज तक नही मिला । सुनते हैं ईश्वर को तुलसीदास ने देखा, सबरी ने देखा, मीरा ने देखा, स्वामी रामतीर्थ ने देखा, सुदामा ने देखा, राधा ने देखा, रेदास ने देखा, कबीर ने देखा, नानक ने देखा, सुदामा ने देखा, राधा ने देखा, लेकिन कुल मिलकर गिनती के कुछ लोगों ने ही देखा ।
इन सबसे मिलना हो नही पाया, ना ही उनसे मिलना हुआ जो इन महानुभावों से मिले हों । फिर भी बात बात में हर कोई उसी ईश्वर की दुहाई देता है । मुश्किल में पडा आदमी ईश्वर को पुकारता है, भविष्य अन्धकार में दिखे तो भी व्यक्ति ईश्वर को बुलाता है । कोई उससे डरता है, कोई उससे रूठता है, कोई उसके नाम की ताली बजाता है, कोई उसका गुणगान करता है, तो को उससे रो रो के उससे फ़रियाद करता है । यानी वह अव्वाल दर्जे का डाक्टर है, जज है, हितेषी है, मुनीम है, दोस्त है, मुहमांगी इच्छा पूरी करने की क्षमता रखता है । वह गजब का हरफन मोला है |
ईश्वर कोई हमारे और आप के जैसे नहीं कि जिसे मानव का देख लेना सम्भव हो, वह तो सम्पूर्ण संसार का रचयिता और पालनकर्ता है, उसके सम्बन्ध में कल्पना भी नहीं की जा सकती कि वह देखाई दे बल्कि जो देखाई दे वह तो सीमित हो गया और ईश्वर की महिमा असीमित है। मूसा नामक एक संदेष्टा (ईश्वर की उन पर दया हो) ने जब ईश्वर से प्रार्थना किया कि “हे ईश्वर हमें अपना रूप देखा दीजिए” तो उत्तर आया कि तुम हमें देख नहीं सकते परन्तु तुम इस पहाड़ पर देखो यदि वह अपने स्थान पर स्थित रहा तो तेरे लिए हमे देखना सम्भव है। जब ईश्वर ने अपना प्रकाश प्रकट किया तो पहाड़ टुकड़े टुकड़े हो गया और मूसा बेहोश हो कर गिर पड़े। मानव अपनी सीमित बुद्धि से जब सोचता है तो समझने लगता है कि ईश्वर कोई मानव के समान है जो दिखाई देना चाहिए। यह तो एक रहा! फिर संसार में विभिन्न चीज़ें हैं जो दिखाई नहीं देतीं पर इंसान को उनके वजूद पर पूरा विश्वास होता है।
एक व्यक्ति जब तक बात करता होता है हमें उसके अन्दर आत्मा के वजूद का पूरा विश्वास होता है लेकिन जब ही वह धरती पर गिर जाता है, आवाज़ बन्द हो जाती है और शरीर ढीला पड़ जाता है तो हमें उसके अन्दर से आत्मा के निकल जाने का पूरा विश्वास हो जाता है हालाँ कि हमने उसके अन्दर से आत्मा को निकलते हुए देखा नहीं।
जब हम घर में बिजली की स्विच आन करते हैं तो पूरा घर प्रकाशमान हो जाता है और हमें घर में प्रकाश के वजूद का पूरा विश्वास हो जाता है फिर जब उसी स्विच को आफ करते हैं तो प्रकाश चला जाता है हालाँ कि हमने उसे आते और जाते हुए अपनी आँखों से नहीं देखा।
उसी प्रकार जब हवा बहती है तो हम उसे देखते नहीं पर उसका अनुभव करके उसके बहने पर पूरा विश्वास प्राप्त कर लेते हैं।
तो जिस प्रकार आत्मा, बिजली और हवा के वजूद पर उसे देखे बिना हमारा पूरा विश्वास होता है उसी प्रकार ईश्वर के वजूद की निशानियाँ पृथ्वी और आकाश स्वयं मानव के अन्दर स्पष्ट रूप में विधमान है और संसार का कण कण ईश्वर का परिचय कराता है
पर कमाल है, इतना सब होते हुए भी किसी को ईश्वर नज़र नही आता । जो नज़र नही आता उस पर इतना विश्वास, इतनी श्रद्धा क्यों ? क्यों की किसी को स्वर्ग चाहिए, किसी को मुक्ति, किसी को इस जीवन से जूझने की युक्ती चाहिए तो किसी को मुक्ति या परम आनंद । श्री कृष्ण कहते हैं, अपनी योगमाया में छिपा हुआ मैं सबके लिए प्रत्यक्ष नही होता, इसलिए यह अज्ञानी लोग मुझे जनम रहित अविनाशी परमेश्वर को नही जानते । लो जी अब तो बिल्कुल साफ़ हो गया है ईश्वर सबके सामने आना ही नही चाहता । जानभूझ कर अपने और हमारे बीच परदा दाल रखा है उसने, माया का परदा ।
ईश्वर को ढूँढने के लिए सात चीजों को छोड़ना जरूरी है- शब्द, स्पर्श, रस, गंध, रूप, सुख और दुःख । शब्दे सुनना है तो उसी के नाम का सुनना,स्पर्श करना हो तो उसी के चरणों का करना, रस लेना हो तो उसी के प्रशाद का या चरणामृत का ही लेना, रूप देखने की इच्छा हो तो उसी की छवि देखना, गंध लेनी हो तो तुलसी माँ की लेना, सुख चाहिए हो तो उसकी याद का, उसके सत्संग का सुख लेना और दुःख हो तो केवल इस बात का की मिला क्यों नही अब तक । तरीका तो पता चला, मगर स्थान ?
रामाकृषण कहते थे उसे ड्राविंग रूम में ढूँढो । ड्राविंग रूम यानी हृदय ! घर का सबसे सुंदर कोना कोना । हृदय सुंदर तब होता है जब उसमे नाना काम हो न कंचन । अपने हृदय में झांका तो क्रोध मिला, इर्ष्या मिली, राग द्वेष, मद -मोह सब कुछ दिखा पर ईश्वर नही दिखा । रामाकृषण ने कहा,पहले हृदय को साफ़, स्वच्छ निर्मल कर डालो । धो लो, मांज लो । असत्य बोलने से हृदय मैला हो जाता है । ऐसा सत्य बोलो की इन्द्रियाँ झूट स्वीकार ही ना कर पायें ।
वे कहते हैं की क्रोध मत करो, हृदय मैला हो जाएगा । फ़िर ईश्वर को कैसे ढूँढेंगे ? किसी ने कहा क्रोध तो अचानक आ जाता है, क्या करें ? वे बोले कुछ मत करो । ईश्वर की तरफ़ जाओगे तो दुर्गुण स्वयं दुम दबा कर भाग जायेंगे । पूर्व की तरफ़ बढोगे पश्चिम स्वयं पीछे रह जाएगा । कबीर ने कहा ईश्वर, न मन्दिर में मिलेगा न मस्जिद में, सब नाराज हो गए तो फ़िर जीव कहाँ ढूंढे उसे ? कबीर बोले चाहत मिटा दो - चाह गयी चिंता मिती, मनुवा बेपरवाह । जिन्हून कुछ नही चाहिए, सोई शहन्शाह ।
न रहेगे चाहत, न मिलेगी चिंता | चिंता हो, चाहत हो तो बस उसी को पाने की | जैसे मीरा को हो गयी थी चाहत, बदनामी हुए, सद्यन्त्र रचे गए मारने के, देश निकाला हो गया, पर चाहत लगी रही उसे पाने की नानक बोले इश्वर का नाम सत्या है, बांकी सब झूट है | हर कार्या करने वाला वही एक है | इश्वर निर्भय है, निर्वेर्री है, हर काल परन्तु इश्वर इश्वर लो अजन्मा है |
हम परमात्मा का साक्षात्कार सुखी हो सकते हैं । परन्तु इसके लिए एक भेदी की आवश्यकता होती है । जो बता सके की वास्तु कहाँ है और उसकी प्राप्ती कैसे होगी ? भक्ती के क्षेत्र में यह भेदी एक पूर्ण सतगुरु है जो हमारा मार्ग दर्शन करके हमें अंतर्मुखी करके मानव तन के भीतर ही आकाश का पर ब्रह्म स्थान में ही परमात्मा का साक्षात्कार करवा देते हैं ।
इसी विषय में कबीर दास जी कहते हैं : बाहर के आसमान से ईश्वर को किसी ने नही पाया । जिसने भी पाया मानव तन के भीतर ही पाया । अतः आवश्यकता है अंतर्मुखी होकर खोजने की, ईश्वर वहीं मिलेगा भीतर के आकाश में । यह मानव तन ही मन्दिर है, मस्जिद है, गुरद्वारा है और गिरजाघर है ।
गुरुवाणी में कहा गया है - ‘बाहर मूल न खोजिये घर माँ ही विधाता ।’ बाइबल कहती है - इंसान परमात्मा को बाहर तलाशता है । उसे बाहर स्वयं से दूर खोजता है, जब की वो हमारे भीतर, हमारे निकट निवास करता है ।
कबीर कहते हैं की इंसान की दशा कस्तुरी मृग की भांती है, जिसकी नाभी में कस्तुरी छिपी होती है । वह उसकी खुशबू से सरोबार हो बाहर जंगल में उसे ताउम्र तलाशता रहता है, परन्तु प्राप्त नही कर पाता और उसके जीवन का अंत हो जाता है ।
इंसान इस तथ्य से अनभिज्ञ है की जिस प्रकार तिलों में तेल होता है, चकमक पत्थेर में आग होती है, दर्पण में अक्ष होता है, पुष्प में सुगंद्ध होती है, उसी प्रकार परमात्मा हमारे भीतर है । अज्ञानतावश हम मृग की भांती ताउम्र उसे खोजते रहते हैं, पर प्राप्त नही कर पाते । परमात्मा तो कहता है - मोको कहाँ तू ढूंढे रे बन्दे में तो तेरे पास में, ना मैं मक्का ना मैं काबा ना काशी कैलाश में । लेकिन हम मूड जन इस संदेश को सुन नही पाते । सुनते हैं तो समझ नही पाते ।
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