The
senses are compared to good and bad horses, which are to be properly controlled,
least they should become unruly.
मानीषी इन्द्रियों को अश्वा बताते हैं और विषयों को उन अश्वों के विचरने का मार्ग । इन इन्द्ररूपी घोड़ो को वशीभूत किये बिना ब्रह्मज्ञान संभव नहीं है । स्थूल विषयों में लिप्त इन्द्रियां अंतरात्मा को देखने में असमर्थ होती हैं । इसीलिए यदि कोई मुमुक्ष ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करना चाहता है , तो उसे अपने इन्द्ररूपी घोड़ो को विषयरूपी गोचर से विमुख कर अंतर्मुखी बनना चाहिए ।
Upanishads explains that to achieve the
ultimate reality is
The body should be considered as a Chariot
The sense as the horses
The intellect taken as a Charioteer
The mind as the reins and
The soul as the Lord seated in the vehicle
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