Knowledge –
ज्ञान
- सम्पूर्ण ज्ञान
को दो भागों में
बँटा जाता
है । अध्यात्मिक ज्ञान
शास्त्र और सांसारिक ज्ञान
शास्त्र । अध्यात्मिक ज्ञान
शास्त्र का सम्बन्ध अपरिवर्तनशील वस्तुओं के विज्ञान से सम्बंधित है
. अध्यात्मिक ज्ञान
शास्त्र और सांसारिक ज्ञान
शास्त्र , इन दोनों को स्पष्ट करने
के लिए
इसाई धर्म
में इन के लिए
क्रमशः ‘पिता
’ और ‘पुत्र
’ सब्दों का प्रयोग किया
गया है ।
यह केवल एक पौराणिक तथ्य
नही है
, बल्कि आप भी हर क्षण यह अनुभव कर सकते हैं
की शुद्धता से केवल शुद्धता ही उत्प्पन होती
है . केवल
इसी लिए
एक कुंवारी माँ से पैदा
हुए ईसा
मसीहा की पवित्रता के बारे में
किसी तरह
के विचार
-विमर्श की आवश्यकता समझे
बिना उन्हें ‘इश्वर का पुत्र
कहा गया
है ।
अपनी
अंतरात्मा अथवा
आत्मिक शुद्धता (कौमार्या ) को जानने
के लिए
यह संकल्प आवश्यक है । पूर्ण रूप
से शुद्ध
वाही है जो मानव
स्पर्श से अछूता है
. इसलिए सांसारिक व्यक्ति से उत्प्पन कोई भी सांसारिक विचार इस शुद्धता (कौमार्य ) को छू भी नही
सकता है ।
कोई
भी राजनैतिक , आर्थिक या वैज्ञानिक विचारधारा उसकी शुद्धता (कौमार्य ) को दूषित
नही कर सकती । ब्रह्माण्ड की मूल धारणा
मानव निर्मित है , यहाँ तक की ब्रह्माण्ड के निर्माणकर्ता का निर्माण भी मानव ने किया है ।
यदि ब्रह्माण्ड और इश्वर का अस्तित्वा है तो वह शुद्ध (कौमार्य ) मानवीय चेतना का ही अंश है । उसके एक बार पवित्र व शुद्ध (कौमार्य ) अवस्था में पहुँचने के बाद उससे उत्पन्न होने वाला सभी कुछ पवित्र व शुद्ध है । कुंवारी मेरी के गर्भ से ईसा मशीहा का जन्म इस तथ्या का साक्षी है ।
यदि ब्रह्माण्ड और इश्वर का अस्तित्वा है तो वह शुद्ध (कौमार्य ) मानवीय चेतना का ही अंश है । उसके एक बार पवित्र व शुद्ध (कौमार्य ) अवस्था में पहुँचने के बाद उससे उत्पन्न होने वाला सभी कुछ पवित्र व शुद्ध है । कुंवारी मेरी के गर्भ से ईसा मशीहा का जन्म इस तथ्या का साक्षी है ।
मेरे
अपने विचार
से इस कलियुग में
कबीर और ईशा मशीहा
ही भगवान् का अवतार हुए
हैं । उन्होंने मानव
शरीर से जन्म नही
लिया केवल
अवतारित ही हुए , एक ही तरह
दोनों ही शिशु के रूप में
नदी में
मिले । संसार को छोड़ते हुए
भी उनका
शरीर नही
मिला । ईशा मशीहा
को गुफा
में पत्थर
से धक्
दिया गया
, जब अगले
दिन खोला
तो वहा
कुछ न था . उसी
तरह कबीर
के शरीर
को दो हिस्सों में
बटने की हुयी , आधा
मुसलमान को दफनाने के लिए और आधा हिन्दुओं को जलाने के लिए । तो केवल
उनको शरीर
के बजाय
केवल फूल
ही मिले
,। जो दोनों ने आपस में
आधे आधे
बाँट लिए
।
मस्तिष्क में केवल वर्गीकरण , विभाजन और चुनाव
तथा विभेदन की क्षमता है । मस्तिष्क केवल उपलब्ध दो विकल्पों में
से एक को चुन
सकता है
/ आई क्यू
को मस्तिष्क की योग्यता नापने
का पैमाना समझा जाता है ।
पवित्र पाण्डुलिपि , इन दोनों
के बीच
मद्यास्ता करने
वाली चेतना
का मानवीकरण है । सांसारिक ज्ञान शास्त्र ठोस
, द्रव / पानी
, गैस / हवा
, आकाश / अन्तरिक्ष और अग्नी / उष्मा
इन्ही पाँच
तत्वों के योग se बना
है । ये पाँचों तत्वा एक दूसरे
पर ही आश्रित हैं
और एक दूसरे से ही बने
हुए हैं
। ठोस
होने के लिए किसी
वास्तु का पहले द्रव
अवस्था में
होना आवश्यक है , ठीक इसी
तरह द्रव्य अवस्था में होने
के लिए
उष्मा अति
आवश्यक है ।
आदिकाल से पृथ्वी सूर्य
के चारों
ओर इस तरह से परिकर्मा कर रही है की शुन्य
से 100 डिग्री तापमान के मध्या
जल द्रव
अवस्था में
ही बना
रहता है । ब्रह्माण्ड में तापमान नकारात्मक से अनन्तं घनात्मक होता है । उष्मा उत्पन्न करने के लिए
किसी ज्वलन
गैस का होना अनियार्या है । ये सभी क्रियाये अन्तरिक्ष में घटती
है , इसलिए
अन्तरिक्ष मूल
तत्वा है । अन्तरिक्ष में डराया द्वारा घेरी गयी जगह
अन्तरिक्ष के विशाल आकार
की तुलना
में नागन्या है । सांसारिक ज्ञान शास्त्र की सभी लीलाएं अन्तरिक्ष में ही घटती है ।
विज्ञान स्वयं को ब्रह्माण्ड में द्रव्य द्वारा घेरे गए नगण्य
स्थान तक ही सिमित
किए हुए
है । इसलिए यह कहा गया
है की विज्ञान एक अपूर्ण दर्शन
है , जब की दर्शन
एक पूर्ण
विज्ञान है । अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र मानते
है की हम शुद्ध
आत्मा है और मानव
कैसे बनें
यह सीखने
के लिए
प्रयत्न कर रहे हैं
। जन्म
के समय
हम पूर्ण
रूप से होते हैं
- शुद्ध चेतन
। शुद्ध
रूप से चेतन होने
में कोई
कठिनाई नही
है , बल्कि
कठिनाई मानव
होने में
है । हम अपनी
अंतरात्मा से पूरी तरह
विमुख हो गए है । हमारे
प्रयासों का उद्देश्य केवल
मानव निर्मित क्रियाओं में पारंगत होना है । व्यशार से सम्मान्य नियम
हों या विधानिक नियम
, बात घर चलाने की व्यवस्था की हो या मानवीय प्रेम
की , हम केवल मानव
निर्मित क्रियाओं और भावनाओं के इर्द गिर्द
ही चक्कर
काटते रहते
हैं । हमारी यही
पर्वृति हमे
संसार के मायावी चक्र
में फंसाए
रखती है ।
आध्यात्मिक शास्त्र अपरिवर्तनशील है
, अवुभाज्य और शुद्ध चेतना
का विज्ञान है । शुद्ध
चेतना का विज्ञान हमें
यह अनुभव
कराता है की सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सिवाय चेतना
के कुछ
भी नही
है । सब कुछ
मैं ही हूँ . मैं
ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हूँ , ब्रह्माण्ड की सभी क्रियायें मेरे दायित्वा में
हैं । मस्तिष्क में
इतनी क्षमता नही है की वह अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र के सम्पूर्ण सत्व
को ग्राहम कर सके ।
आपकी आई क्यू जितनी अधिक है आप उतने ही अधिक बुद्धिमान हो जाते हैं । जब की शुद्ध चेतना अपने आप में सम्पूर्ण और अविभाज्य है जिसे मस्तिष्क हज़ार जन्मों में भी पूरी तरह ग्रहण नही कर सकता ।
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