Monday, July 16, 2012

CHARACTER-

A human being’s character is priceless. If the moral base is weakened, the future will be shaky. But no man can be perfect. There will be flaws in his conduct and lapses in his acts.But should it mean that people with certain drawbacks be totally avoided? Can anyone boast or claim that he is a paragon of virtue or that he is blemishless?

If mistakes alone are to be identified in a person, no one can become a friend at all. Hence it is necessary to overlook the faults in another man and assess him only from the point of view of his good traits. We should ignore his failings. (बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोई , जो दिल खोजा अपना मुझ से बुरा न कोई )

1. Usually husk comes mixed with paddy but on that score, the paddy is not rejected. It is used ater the chaff is taken away.
2. The rose plant has thorns but the flowers is plucked is avoiding them.
3. The river during its freshes, carries a lot of froth but the water is used for domestic purpose after clearing the foam and filtering it.

Like wise the dark spots in man should be just over looked and only the good entertained। These were the comforting words of Lord Rama भगवान् राम when Lakshmana लक्ष्मण wondered why Sugriva सुग्रीव should be encouraged, particularly when he was not dependable. Lakshamana’s लक्ष्मण doubt about the genuineness of Sugriva’s सुग्रीव friendship. The fact that he had spoken ill of his brither left him with a feeling that Sugriva सुग्रीव might turn unreliable. Sri Ram श्री राम a said the attitude displayed by Sugriva सुग्रीव and Bharata भरत would reveal to the world how people held their brother in esteem. Bharata भरत was a symbol of devotion and loyality whereas Sugriva सुग्रीव took the opportunity to have his honour vindicated thriugh Sri Rama श्री राम .
Knowledge - ज्ञान - सम्पूर्ण ज्ञान को दो भागों में बँटा जाता है । अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र और सांसारिक ज्ञान शास्त्र । अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र का सम्बन्ध अपरिवर्तनशील वस्तुओं के विज्ञान से सम्बंधित है . अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र और सांसारिक ज्ञान शास्त्र , इन दोनों को स्पष्ट करने के लिए इसाई धर्म में इन के लिए क्रमशः ‘पिता ’ और ‘पुत्र ’ सब्दों का प्रयोग किया गया है ।

यह केवल एक पौराणिक तथ्य नही है , बल्कि आप भी हर क्षण यह अनुभव कर सकते हैं की शुद्धता से केवल शुद्धता ही उत्प्पन होती है . केवल इसी लिए एक कुंवारी माँ से पैदा हुए ईसा मसीहा की पवित्रता के बारे में किसी तरह के विचार -विमर्श की आवश्यकता समझे बिना उन्हें ‘इश्वर का पुत्र कहा गया है ।

अपनी अंतरात्मा अथवा आत्मिक शुद्धता (कौमार्या ) को जानने के लिए यह संकल्प आवश्यक है । पूर्ण रूप से शुद्ध वाही है जो मानव स्पर्श से अछूता है . इसलिए सांसारिक व्यक्ति से उत्प्पन कोई भी सांसारिक विचार इस शुद्धता (कौमार्य ) को छू भी नही सकता है ।

कोई भी राजनैतिक , आर्थिक या वैज्ञानिक विचारधारा उसकी शुद्धता (कौमार्य ) को दूषित नही कर सकती । ब्रह्माण्ड की मूल धारणा मानव निर्मित है , यहाँ तक की ब्रह्माण्ड के निर्माणकर्ता का निर्माण भी मानव ने किया है ।

यदि ब्रह्माण्ड और इश्वर का अस्तित्वा है तो वह शुद्ध (कौमार्य ) मानवीय चेतना का ही अंश है । उसके एक बार पवित्र व शुद्ध (कौमार्य ) अवस्था में पहुँचने के बाद उससे उत्पन्न होने वाला सभी कुछ पवित्र व शुद्ध है । कुंवारी मेरी के गर्भ से ईसा मशीहा का जन्म इस तथ्या का साक्षी है ।

मेरे अपने विचार से इस कलियुग में कबीर और ईशा मशीहा ही भगवान् का अवतार हुए हैं । उन्होंने मानव शरीर से जन्म नही लिया केवल अवतारित ही हुए , एक ही तरह दोनों ही शिशु के रूप में नदी में मिले । संसार को छोड़ते हुए भी उनका शरीर नही मिला । ईशा मशीहा को गुफा में पत्थर से धक् दिया गया , जब अगले दिन खोला तो वहा कुछ न था . उसी तरह कबीर के शरीर को दो हिस्सों में बटने की हुयी , आधा मुसलमान को दफनाने के लिए और आधा हिन्दुओं को जलाने के लिए । तो केवल उनको शरीर के बजाय केवल फूल ही मिले ,। जो दोनों ने आपस में आधे आधे बाँट लिए ।

मस्तिष्क में केवल वर्गीकरण , विभाजन और चुनाव तथा विभेदन की क्षमता है । मस्तिष्क केवल उपलब्ध दो विकल्पों में से एक को चुन सकता है / आई क्यू को मस्तिष्क की योग्यता नापने का पैमाना समझा जाता है ।

पवित्र पाण्डुलिपि , इन दोनों के बीच मद्यास्ता करने वाली चेतना का मानवीकरण है । सांसारिक ज्ञान शास्त्र ठोस , द्रव / पानी , गैस / हवा , आकाश / अन्तरिक्ष और अग्नी / उष्मा इन्ही पाँच तत्वों के योग se बना है । ये पाँचों तत्वा एक दूसरे पर ही आश्रित हैं और एक दूसरे से ही बने हुए हैं । ठोस होने के लिए किसी वास्तु का पहले द्रव अवस्था में होना आवश्यक है , ठीक इसी तरह द्रव्य अवस्था में होने के लिए उष्मा अति आवश्यक है ।

आदिकाल से पृथ्वी सूर्य के चारों ओर इस तरह से परिकर्मा कर रही है की शुन्य से 100 डिग्री तापमान के मध्या जल द्रव अवस्था में ही बना रहता है । ब्रह्माण्ड में तापमान नकारात्मक से अनन्तं घनात्मक होता है । उष्मा उत्पन्न करने के लिए किसी ज्वलन गैस का होना अनियार्या है । ये सभी क्रियाये अन्तरिक्ष में घटती है , इसलिए अन्तरिक्ष मूल तत्वा है । अन्तरिक्ष में डराया द्वारा घेरी गयी जगह अन्तरिक्ष के विशाल आकार की तुलना में नागन्या है । सांसारिक ज्ञान शास्त्र की सभी लीलाएं अन्तरिक्ष में ही घटती है ।

विज्ञान स्वयं को ब्रह्माण्ड में द्रव्य द्वारा घेरे गए नगण्य स्थान तक ही सिमित किए हुए है । इसलिए यह कहा गया है की विज्ञान एक अपूर्ण दर्शन है , जब की दर्शन एक पूर्ण विज्ञान है । अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र मानते है की हम शुद्ध आत्मा है और मानव कैसे बनें यह सीखने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं । जन्म के समय हम पूर्ण रूप से होते हैं - शुद्ध चेतन । शुद्ध रूप से चेतन होने में कोई कठिनाई नही है , बल्कि कठिनाई मानव होने में है । हम अपनी अंतरात्मा से पूरी तरह विमुख हो गए है । हमारे प्रयासों का उद्देश्य केवल मानव निर्मित क्रियाओं में पारंगत होना है । व्यशार से सम्मान्य नियम हों या विधानिक नियम , बात घर चलाने की व्यवस्था की हो या मानवीय प्रेम की , हम केवल मानव निर्मित क्रियाओं और भावनाओं के इर्द गिर्द ही चक्कर काटते रहते हैं । हमारी यही पर्वृति हमे संसार के मायावी चक्र में फंसाए रखती है ।

आध्यात्मिक शास्त्र अपरिवर्तनशील है , अवुभाज्य और शुद्ध चेतना का विज्ञान है । शुद्ध चेतना का विज्ञान हमें यह अनुभव कराता है की सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सिवाय चेतना के कुछ भी नही है । सब कुछ मैं ही हूँ . मैं ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हूँ , ब्रह्माण्ड की सभी क्रियायें मेरे दायित्वा में हैं । मस्तिष्क में इतनी क्षमता नही है की वह अध्यात्मिक ज्ञान शास्त्र के सम्पूर्ण सत्व को ग्राहम कर सके ।

आपकी आई क्यू जितनी अधिक है आप उतने ही अधिक बुद्धिमान हो जाते हैं । जब की शुद्ध चेतना अपने आप में सम्पूर्ण और अविभाज्य है जिसे मस्तिष्क हज़ार जन्मों में भी पूरी तरह ग्रहण नही कर सकता ।

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