Sunday, November 28, 2010

"जब कुछ नहीं था तब मृत्यु थी ।"

"जब कुछ नहीं था तब मृत्यु थी ।" मृत्यु का को रूप या आकार तो है ही नहीं । अस्तित्व का अभाव ही तो मृत्यु है । रूप का, आकार का, क्रिया का, गति का, किसी का भी न रह जाना । यदि किसी का अस्तित्व था ही नहीं तो वह अंधकार भी नहीं रहा होगा । मृत्यु ही रही होगी । अंधकार का रूप भी उसी ने लिया होगा । यदि कोई अपने जन्म से पूर्व की अवस्था को नहीं समझ पाता तो परमेष्ठी कैसे समझ पाते । वह भी अपने पूर्व रूप को समझ न पाये । उस अंधकार से पहले वह स्व्यं मृत्यु रूप ही थे । जीवन और सृजन क्या जो नहीं था, उसका हो जाना, जिसका अस्तित्व नहीं था उसका अस्तित्व में आ जाना ही नहीं है ।

"सब कुछ मृत्यु से निकला है । मृत्यु ही जीवन का गर्भ है । सृष्टी का मूल ।" अब वह कुछ आत्मसजग हो गये थे । "सब कुछ इसी से निकला है । मृत्यु से ही । वही थी । मृत्युना एवं इंद आवृतं आसीत ।" मृत्यु से ही सब कुछ ढ़का हुआ था । क्षुधा से ही आवृत था सब कुछ । आशनाया से । आशनाया हि मृत्युः । मृत्यु क्षुधा का ही दूसरा नाम तो है । सब कुछ को निगल चली जाती है यह । परम क्षुधा । अमित और अनंत भूक । इसी का कभी अंत नहीं होता । सृष्टि से पहले भी यही थी और सृष्टि के बाद भी यही क्रियाशील रह्ती है । कभी अपने गर्भ में छिपी और कभी अपने को ही उदघाटित करती । अपने से बाहर आकर अपने को ग्रस्ती ।

"अनंत भूक । यही मृत्यु की लालसा है । और इसी से सब कुछ पैदा हुआ, मृत्यु की इस लालसा से ही ।"

आरंभ में एक अकेला सत ही था । उसके अलावा कोई दूसरा नहीं था और उसका होना भी न होने जैसा ही था, इसलिये कुछ लोग कह्ते हैं कि आरंम्भ में एकमात्र असत ही था और उस असत से ही स‍त की उत्पति हुई । वेद में एक पूरा सूक्त है जिसमें इस असत से सृष्टि के अविभार्व की बात की गयी है । परंतु क्या असत से सत की उत्त्पति हो सकती है ? इसलिये यह समझो कि वह जो आरंम्भ में एक और अद्वितीय था वह सत ही था, क्योंकि सत से ही सत की उत्पति हो सकती है ।

सृष्टि से पहले कुछ नहीं था । अस्तित्व से पहले अस्तित्व का अभाव था । अस्तित्व के अभाव का ही दूसरा नाम है मृत्यु । जब कुछ नहीं था तो मृत्यु ही थी । उस महातिमिर की भांति जिसे विग्यानी ब्लैक होल या अंध विवर कह्ते हैं । जो अपने प्रबल गुरुत्व के कारण प्रकाश रश्मियों तक को बाहर निकलने नहीं देता । जो अपने सघन दबाव के कारण् परम द्रव को खोलने तक नहीं देता । वह जिसका विस्फोट हो तो वह अपने अदृष्य आकार के हजारों लाखों गुने दॄश्य पिंडों में बदल जाए ।

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