Tuesday, August 4, 2009


सुख एक उत्तेजना है

हम खाते -पीते हैं , जागते -सोते हैं और साँस लेते हैं . हमारी अपनी पाँचों कर्नेनिद्रियाँ अपने -अपने ढ़ंग से काम करती हैं . जब तक इन सभी में तालमेल बना रहता है , हमें सुख की अनुभूति होती रहती है । जैसे ही इन में कोई बाधा आई , वैसे ही हम दुःख का अनुभव करते हैं । आँखें चली गयी तो पूरी दुनिया में हमारे लिए अँधेरा छागया । बहरा होते ही हम दुनिया से कट जाते हैं और यदि स्पर्श की संवेदना ही गायब हो जाए तो फ़िर जीना कोई जीना नही रह जाता । जब तक ये कर्मेन्द्रियाँ ठीक से काम करती हैं , तब तक हमें इनकी कीमत पता नही चलती । लेकिन जैसे ही इनमे से कोई अशक्त होती है , हमें इनकी कीमत का ज्ञान हो जाता है ।

तो क्या इसके आधार पर हम यह मान कर कोई गलती नही करेंगे की हमारे सुख का आधार मुख्यतः हमारे करमेंद्रियाँ ही हैं ? यदि हमें भौतिक जगत का ज्ञान इन्हीं के जरिये हो रहा है तो स्वाभाविक है की ये ही हमारे सुख का आधार हैं । लेकिन यहाँ गौर करने की बात यह है की केवल भौतिक सुख ही सबसे बड़ा सच है या एक मात्र सच है ?
हम भी सोचते हैं की रुपया होने से सुख होगा , परन्तु जिनके पास बहुत रुपया है उनसे जा कर पूछिए की क्या वे सुखी हैं ? बात्ता शू कोम्पनी के मालिक अपने समय के दूसरे धनी व्यक्ति थे । जब वे पेरिस में थे तो उनहोंने अपनी हवेली की चोधावीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी । क्या कोई सुख में आत्महत्या करता है ?

जब सहन करने का सामर्थ्य नही होता तभी आदमी आत्महत्या करता है । हेनरी फोर्ड का एक ही बेटा था । जब वह तीन साल का हुआ , तो उसे एक भयंकर बीमारी ने जकड लिया , जो उसे मृत्यु के मुँह में ले जाने का बहाना बना । क्या पिता के अरबों रुपये उसके काम आए ? वह धनि पिता अपने धन के बल पर अपने पुत्र को नही रोक सका , ‘यद्दपि वह विश्व का प्रथम धनी व्यक्ती था । कोई सोचता है की सुंदर स्त्री होने से सुख होगा , सुंदर पति होने से सुख होगा , लड़का होने से सुख होगा , ऐसा करते करते हाथ से जीवन चला जाता है । लेकिन सुख नही मिलता । क्या कभी हमने ये सोचा है की हमारे दुखों का मूल कारण क्या है ?

ज्यादातर मामलों में ऐसा ही है । लेकिन मैंने पाया की दूसरों को ऐसा लगता है स्वयं को नही । और हम स्वयं ही दूसरों के बारे ठीक वेसा ही सोचते हैं , जैसा की दूसरे हमारे बारे में सोचते हैं । भौतिक सुविधावों से संपन्न व्यक्ति हमें हमेशा सुखी दिखाए पड़ता है । सच्चाई का पता तब चलता है , जब हम स्वयं को भौतिक रूप से संपन बना लेते हैं । लेकिन जब तक पता चलता है ,तब तक काफी देर हो जाती है । सब कुछ छोड़ कर कमंडल लेकर हरिद्वार -ऋषिकेश चले जाना इसका हल नही है । यह तो एक प्रकार से किसी चर्म क्रिया की चरम प्रतिक्रिया हुयी । कहाँ तो इतना कुछ और कहाँ कुछ भी नहीं । हरिद्वार -ऋषिकेश भी उन्हें सुख शान्ति नही दे सकता , क्यों की जो दे सकता था , उसे तो वे छोड़ आए हैं ।

बात बहुत साफ़ है की सच की खोज एक प्रकार से उत्तेजना की खोज है । सुख अपने आप में एक उत्तेजना है । कोई उत्तेजना शराब के प्याले में पाटा है तो कोई अपने आप को पूरी तरह कामों में डूबा देने से । कोई यह उत्तेजना लूटने में पाटा है , तो कोई ये उत्तेजना अपने आप को लुटा देने में । चूँकि उत्तेजना हमारे शरीर और मस्तिष्क की एक अस्वभाविक स्थिति है । इसलिए वह लम्बे समय तक नही रह सकती है । समुन्दर में रोज़ ज्वार -भाते । कभी कभी आते हैं । यह समुन्दर की उत्तेजना है । सोडे की बोतल खोलते ही तेज़ी से झाग तो निकालता है , लेकिन निकलता नही रहता । सुख भी ठीक इसी तरह हमेशा मौजूद नही रहता । तो क्या फ़िर स्थायीसुख जैसी कोई बात नही रहती ? तो क्या आदमी लंबे समय तक सुख के साथ अपना रिश्ता नही निभा सकता ? निभा सकता है । लेकिन भौतिकता के साथ नही । निभा सकता है , लेकिन उत्तेजना के साथ नही ।

यदि हम सच को एक अनुभूति मान लें तो उसके साथ लम्बी और अंत हीन यात्रा की जा सकती है । और सच तो सही है की सुख मूलतः अनुभूति ही है । हम बाहरी चीजों को देखते हैं । उनका उपयोग करते हैं । उस समय हमें जो सुख मिलता है । वह एक प्रकार की उत्तेजना होती है । बाद में हम दूसरी चीजों के उपभोग में लग जाते हैं । ये चीजें फ़िर से उत्तेजना पैदा करती हैं । लंबे समय तक यही क्रम चलता रहता है । लेकिन एक समय ऐसा आता है , जब नयी चीजों के लिए गुन्जयीस नही रह जाती । तो अब क्या करेंगे ? अब कुछ करने की जरुरत नही है अब वह समय आ गया है , जब हमे अनुभूति का आनन्द लेना है । हमने अब तक जो कुछ भी किया है , उनके छोटे छोटे टुकडों को अपनी याददास्त के खजाने से निकलने लगिए । याद कीजिये । कल्पना कीजिये उन सुखों की और मानसिक स्तर पर जीना शुरू कर दीजिये उन पलों को । आप देखेंगे की किस प्रकार ये अनुभूतियाँ आपके सफर में आप की साथी होंगी .

We convince ourselves that life will be better after we get married, have a baby, then another. Then we are frustrated that the kids aren't old enough and we'll be more content when they are. After that we're frustrated that we have teenagers to deal with. We will certainly be happy when they are out of that stage. We tell ourselves that our life will be complete when our spouse gets his or her act together, when we get a nicer car, are able to go on a nice vacation, when we retire.
The truth is, there's no better time to be happy than right now.
If not now, when?

First, I was dying to finish my school and start College.
And then I was dying to finish my college and start working.
Then I was dying to marry and have children.
And then I was dying for my children, to grow old enough, so I could go back to work.
But then I was dying to retire.
And now I am dying……….
And suddenly I realized,
I FORGOT TO LIVE
Please don't let this happen to you. Appreciate your current situation and enjoy each day.

And also rightly said that

To make money we loose our health,
and to restore our health we loose our money………..
we live as if we are never going to die,
and we die as if we never lived.

Our life will always be filled with challenges. It's best to admit this to ourself and decide to be happy anyway.

"For a long time it had seemed to me that life was about to begin - real life. But there was always some obstacle in the way, something to be gotten through first, some unfinished business, time still to be served, and a debt to be paid. Then life would begin. At last it dawned on me that these obstacles were my life".

This perspective has helped me to see that there is no way to happiness. Happiness is the way.
So, treasure every moment that we have। And treasure it more because we shared it with someone special, special enough to spend our time and remember that time waits for no one

So stop waiting until we finish school, until we go back to school, until we lose some money, until you gain some money, until we have kids, until our kids leave the house, until we start work, until we retire, until we get a girlfriend, until we get married, until Friday night, until Sunday morning, until we get a new car or home, until home is paid off, until spring, until summer, until fall, until winter, until we are off welfare, until the first or fifteenth, until we've had a drink, until we die, until we are born again to decide that there is no better time than right now to be happy.


Happiness is a journey, not a destination। Work like we don't need money, Love like we've never been hurt, and dance like no one's watching.

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