Before we have to know about our self the most Important Subject of this century.
जैसे शरीर स्थूल और मन सूक्ष्म है. मन में हजारों लाखों तरह के भिन्न भिन्न विचार भरे रहते हैं, और असंख्य और भरे जाने की गुन्जैस रहती है, परन्तु स्थान का प्राण नहीं खटकता. स्थूल वस्तुओं की शक्तियां सीमित हैं और व् अशीमित. शरीर मैं सूक्षम प्राण रहने के कारन उसमे विभिन्न प्रकार की गति विधियां होती रहती हैं. जब प्राण इससे अलग हो जाता है, कहा जाता है प्राण शरीर उसे अपने साथ रखने में अयोग्य हो जाता है तो वह अपनी सर्वब्यापी प्राण तत्त्व में मिल जाता है. और शरीर सड़ने लगता है।
साधारण रूप से इसे यूँ समझा जा सकता है की जड़ और चेतन दो प्रकार का संसार होता है.
जितनी कोइ वास्तु स्थूल से सूक्षम बनती है, उतनी ही वह शक्ती हकती विकासs शक्ति है. जल से अधिक hakti जल के ब्रह्माक ब्रह्माक ब्रह्माक ब्रह्माक ब्रह्माक एसा शक्ती होती है. जिससे सक्द्नों तन की रेलगाडी के डिब्बे खींचे जाते हैं. अग्नि का सूक्षम रूप विद्युत है. जिससे बड़े बड़े कारखाने व मिलें चलाई जाती हैं और अंधकार को प्रकाश मैं परिवर्तित करने की सामर्थ्य प्राप्त होती है. हमारे सुकषम शरीर मैं अनेक प्रकार की शक्तियां विद्यमान हैं, उनको जगाकर ही हम असाधारण कार्यों केसंपदन की क्षमता वाले हो जाते हैं. यह प्रत्यक्ष नियम है.सूक्षम जगत तक सूक्षम की ही पहुँच संभव हो सकती है. स्थूल वस्तुओं कस वहां प्रवेश निशिध्ध है. उसी प्रकार यह जगत स्थूल और सूक्षम की भाषा मैं स्थूल कहते हैं. जिसको हम स्थूल नेत्रों से देख नहीं सकते हैं, जिसका नाप टोल और वजन नहीं होता और जिसे स्थान की अपेक्षा नहीं रहती, वह सूक्षम कहलाता है.
Prana the body and the mother of thought and thus also of the mind। Prana suffuses all living form but is not itself the Atman or individual soul. In the Ayurveda, the Sun and sunshine are held to be a source of Prana.
In Ayurveda, the Prana is further classified into subcategories, referred to as pranas. According to Hindu philosophy these are the vital principles of basic energy and subtle faculties of an individual that sustain physiological processes. There are five pranas or vital currents in the Hindu system:
Prana : Responsible for the beating of the heart and breathing. Prana enters the body through the breath and is sent to every cell through the circulatory system.
Atma or the soul is the performer of the homa; the mind is the Brahma brahma(the one who makes it happen); the bad intentions such as anger, greed, jealousy, desire etc are the sacrificial objects (comparable to the animals sacrificed); Mental strength or control is the vow; Contentment and the intellectual organs are the utensils that can be utilized in the homa; the sense organs are the sacrificial objects (comparable to the Havis or the rice) to be used; the Head or the skull is the utensil; the Hair thereon is the Darbha (the dried grass used in homa); the face is the sacrificing stage and the two lines of teeth, the bones, nerves and tissue are comparable to the other utensils and objects used in a Homa
“linga is derived from the two Sanskrit words laya (dissolution) and agaman (recreation).” Thus the linga symbolizes both the creative and destructive power of the Lord and great sanctity is attached to it by the devotees.
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