If there is a God? Who is this Supreme Being? Who is God? Can we know about God? And if knowing God is possible? How do we comprehend Him: by reason or only through an ascetic epiphany of faith? If so, how can He be realized? Is it necessary to have so many Gods? How can I find God?
These questions have tormented theologians and mystics in the 4000- year history of monotheism. And does it serve the real purpose some ask? But whatever methods used to invoke their blessings. The basic source is only one Supreme Being and other derives authority from Him. Each group call, Him by a name of their preference. There is no conflict in uttering the names but God is one
इश्वर है क्या ?
सूना है इश्वर है ! किसी किसी ने इश्वर को देखा भी है । जिसने उन्हें देखा है उनसे मिलने का सौभाग्य आज तक नही मिला । सुनते हैं इश्वर को तुलसीदास ने देखा , सबरी ने देखा , मीरा ने देखा , स्वामी रामतीर्थ ने देखा , सुदामा ने देखा , राधा ने देखा , रेदास ने देखा , कबीर ने देखा , नानक ने देखा , सुदामा ने देखा , राधा ने देखा , लेकिन कुल मिलकर गिनती के कुछ लोगों ने ही देखा ।
इन सबसे मिलना हो नही पाया , ना ही उनसे मिलना हुआ जो इन महानुभावों से मिले हों । फिर भी बात बात में हर कोई उसी इश्वर की दुहाई देता है । मुश्किल में पडा आदमी इश्वर को पुकारता है , भविष्य अन्धकार में दिखे तो भी व्यक्ति इश्वर को बुलाता है । कोई उससे डरता है , कोई उससे रूठता है , कोई उसके नाम की ताली बजाता है , कोई उसका गुणगान करता है , तो को i उससे रो रो के उससे फ़रियाद करता है । यानी वह अव्वाल दर्जे का डाक्टर है , जज है , हितेषी है , मुनीम है , दोस्त है , मुहमांगी इच्छा पूरी करने की क्षमता रखता है । वह गजब का हरफन मोला है .
पर कमाल है , इतना सब होते हुए भी किसी को इश्वर नज़र नही आता । जो नज़र नही आता उस पर इतना विश्वास , इतनी श्र्ध्हा क्यों ? क्यों की किसी को स्वर्ग चाहिए , किसी को मुक्ति , किसी को इस जीवन से जूझने की युक्ती चाहिए तो किसी को मुक्ति या परम आनंद । श्री कृष्ण कहते हैं , अपनी योगमाया में छिपा हुआ मैं सबके लिए प्रत्यक्ष नही होता , इसलिए यह अज्ञानी लोग मुझे जनम रहित अविनाशी परमेश्वर को नही जानते । लो जी अब तो बिल्कुल साफ़ हो गया है इश्वर सबके सामने आना ही नही चाहता । जानभूझ कर अपने और हमारे बीच परदा दाल रखा है उसने , माया का परदा ।
इश्वर को धुन्धने के लिए सात चीजों को छोड़ना जरूरी है - शब्द , स्पर्श , रस , गंध , रूप , सुख और दुःख । शब्दे सुनना है तो उसी के नाम का सुनना , स्पर्श करना हो तो उसी के चरणों का करना , रस लेना हो तो उसी के प्रशाद का या चरणामृत का ही लेना , रूप देखने की इच्छा हो तो उसी की छवि देखना , गंध लेनी हो तो तुलसी माँ की लेना , सुख चाहिए हो तो उसकी याद का , उसके सत्संग का सुख लेना और दुःख हो तो केवल इस बात का की मिला क्यों नही अब तक । तरीका तो पता चला , मगर स्थान ?
राम्क्रिशन कहते थे उसे ड्राविंग रूम में ध्हुन्दो । ड्राविंग रूम यानी हृदय ! घर का सबसे सुंदर कोना कोना । हृदय सुंदर तब होता है जब उसमे ना ना ना काम काम काम हो न कंचन । अपने हृदय में झांका तो क्रोध मिला , इर्ष्या मिली मिली मिली , राग द्वेष द्वेष द्वेष द्वेष द्वेष , मद -मोहा सब कुछ दिखा पर इश्वर नही दिखा । राम्क्रिशन ने कहा , पहले हृदय को साफ़ , स्वच्छ निर्मल कर डालो । धो लो , मंज लो । असत्य बोलने से हृदय माईला हो जाता है । ऐसा सत्या बोलो की इन्द्रियाँ झूट स्वीकार ही ना कर पायें ।
वे कहते हैं की क्रोध मत करो , हृदय मिला हो जाएगा । फ़िर इश्वर को कैसे धुन्देंगे ? किसी ने कहा क्रोध तो अचानक आ जाता है , क्या करें ? वे बोले कुछ मत करो । इश्वर की तरफ़ जाओगे तो दुर्गुण स्वयं दूम दबा कर भाग जायेंगे । पूर्व की तरफ़ बढोगे पश्चिम स्वयं पीछे रह जाएगा । कबीर ने कहा इश्वर , न मन्दिर में मिलेगा न मस्जिद में , सब नाराज हो गए तो फ़िर जीव कहाँ ढूंढे उसे ? कबीर बोले चाहत मिटा दो - चाह गयी चिंता मिती , मनुवा बेपरवाह । जिन्हून कुछ नही चाहिए , सोई सहन्शाह ।
न रहेगे चाहत , न मिलेगी चिंता . चिंता हो , चाहत हो तो बस उसी को पाने की . जैसे मीरा को हो गयी थी चाहत . बदनामी हुए . सद्यन्त्र रचे गए मारने के , देश निकाला हो गया , पर चाहत लगी रही उसे पाने की नानक बोले इश्वर का नाम सत्या है , बांकी सब झूट है . हर कार्या करने वाला वही एक है . इश्वर निर्भय है , निर्वेर्री है , हर काल परन्तु इश्वर इश्वर लो लो , अजन्मा है .
हम परमात्मा का saakshaatkaar sukhee हो सकते हैं । परन्तु इसके लिए एक भेदी की आवश्यकता होती है । जो बता सके की वास्तु कहाँ है और उसकी प्राप्ती कैसे होगी ? भक्ती के क्षेत्र में यह भेदी एक पूर्ण सतगुरु है जो हमारा मार्ग दर्शन करके hame antarmukhee करके मानव तन के भीतर ही आकाश का पर ब्रह्म स्थान में ही परमात्मा का saakshaatkaar करवा देते हैं ।
इसी विषय में कबीर दास जी कहते हैं : बाहर के आसमान से इश्वर को किसी ने नही पाया । जिसने भी पाया मानव तन के भीतर ही पाया । अतः आवश्यकता है अंतर्मुखी होकर खोजने की , इश्वर वहीं मिलेगा भीतर के आकाश में । यह मानव तन ही मन्दिर है , मस्जिद है , गुरद्वारा है और गिरजाघर है ।
गुरुवाणी में कहा गया है - ‘बाहर मूल न खोजिये घर माँ ही विधाता ।’ बाइबल कहती है - इंसान परमात्मा को बाहर तलाशता है । उसे बाहर स्वयं से दूर खोजता है , जब की वो हमारे भीतर , हमारे निकट निवास करता है ।
कबीर कहते हैं की इंसान की दशा कस्तुरी मृग की भांती है , जिसकी नाभी में कस्तुरी छिपी होती है । वह उसकी खुशबू से सरोबार हो बाहर जंगल में उसे ताउम्र तलाशता रहता है , परन्तु प्राप्त नही कर पाटा और उसके जीवन का अंत हो जाता है ।
इंसान इस तथ्य से अनभिज्ञ है की जिस प्रकार तिलों में तेल होता है , चकमक पत्थेर में आग होती है , दर्पण में अक्ष होता है , पुष्प में सुगंद्ध होती है , उसी प्रकार परमात्मा हमारे भीतर है । अज्ञानतावश हम मृग की भांती ताउम्र उसे खोजते रहते हैं , पर प्राप्त नही कर पाते । परमात्मा तो कहता है - मोको कहाँ तू ढूंढे रे बन्दे में तो तेरे पास में , ना मैं मक्का ना मैं काबा ना काशी कैलाश में । लेकिन हम मूड जन इस संदेश को सुन नही पाते । सुनते हैं तो समझ नही पाते ।